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अपने क्षेत्र में किसी एक उद्योग को चुनकर उसके इतिहास का पता लगाएँ। उसकी प्रौद्योगिकी किस तरह बदली? उसमें मजदूर कहाँ से आते हैं? उसके उत्पादों का विज्ञापन और मार्केटिंग किस - Social Science (सामाजिक विज्ञान)

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प्रश्न

अपने क्षेत्र में किसी एक उद्योग को चुनकर उसके इतिहास का पता लगाएँ। उसकी प्रौद्योगिकी किस तरह बदली? उसमें मजदूर कहाँ से आते हैं? उसके उत्पादों का विज्ञापन और मार्केटिंग किस तरह किया जाता है? उस उद्योग के इतिहास के बारे में उसके मालिकों और उसमें काम करने वाले कुछ मजदूरों से बात करके देखिए।

दीर्घउत्तर

उत्तर

हमारे क्षेत्र में पत्थर और टाइलों का उद्योग काफी व्यापक स्तर पर फैला हुआ है। दुर्गापुरी चौक से लेकर लोनी तक इसके पचासों शोरूम व गोदाम हैं। पिछले पचास वर्षों से इस उद्योग में अनेक परिवर्तन आये हैं। पहले इसके चार-पाँच शोरूम व गोदाम ही हुआ करते थे लेकिन दिल्ली जैसे शहर में बढ़ते निर्माण कार्यों व आधुनिक निर्माण में घरों से लेकर बड़े-बड़े मॉलों तक में पत्थर के बढ़ते प्रयोग ने क्षेत्र में अनेक शोरूमों व गोदामों को फैलने का मौका दिया है।

बदलती प्रौद्योगिकी – पहले पत्थरों व टाइलों का यहाँ सिर्फ व्यापार होता था। राजस्थान के कोटा, जोधपुर व उदयपुर से पत्थर यहाँ लाकर बेचे जाते थे लेकिन बदलते फैशन में सिर्फ साधारण पत्थर के स्थान पर अब नक्काशीदार पत्थरों तथा पालिश किये गये पत्थरों की माँग ने यहाँ पत्थरों की कटाई-तराशी और पालिश की तकनीक में बहुत परिवर्तन ला दिया है। मशीनों द्वारा यहाँ पत्थरों को विभिन्न आकारों व डिजाइनों में काटा व तराशा जाता है। राजस्थान से लाए गए पत्थरों को विदेशों से लाए गए पत्थरों के साथ मेल करके पत्थरों की डिजाइनदार टाइलें बनायी जाती हैं। दीवारों व ड्राइंगरूम के लिए पत्थरों को लकड़ी व प्लास्टिक के फ्रेमों में भी जोड़ा व जड़ा जाता है। इसके लिये कुशल कारीगर व आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।
इन गोदामों व शोरूमों पर दो तरह के मज़दूर होते हैं-एक तो वे जो सिर्फ पत्थरों की ढुलाई का काम करते हैं व दूसरे वो जो इसकी कटाई व गढ़ाई का काम करते हैं । ढुलाई की मजदूरी करने वाले मजदूर प्रायः बिहार, उड़ीसा व उत्तर प्रदेश से यहाँ आते हैं तथा पत्थरों की नक्कासी व पॉलिश व घिसाई-कटाई करने वाले मज़दूर राजस्थान व कटकी से यहाँ आते हैं।
इस उद्योग के कुछ मालिकों व मजदूरों से बात करके पता चला कि यह उद्योग यहाँ 50-60 वर्षों से चल रहा है तथा चूंकि यह जगह औद्योगिक क्षेत्र के रूप में घोषित नहीं है इसलिये यहाँ के मालिक व मजदूर सरकारी उत्पीड़न के शिकार हैं तथा क्षेत्र में उद्योग के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

इसके उत्पादों का विज्ञापन और मार्केटिंग के बारे में पूछने पर बताया कि उन्हें इसके लिये विशेष प्रयास व उपाय करने की जरूरत नहीं पड़ती। दिल्ली व उसके आस-पास इस तरह की कुछ एक जगह ही हैं जैसे मंगोलपुरी, कीर्ति नगर आदि तथा निर्माण कार्य में लगी कम्पनियाँ व लोग स्वयं ही अच्छे पत्थरों व टाइलों की खोज में यहाँ स्वयं आते हैं तथा इस क्षेत्र में अच्छी क्वालिटी व कीमत कम होने के कारण इन्हें अपना ग्राहक बनाने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती। बस स्थानीय निकायों की सख्ती ने कुछ लोगों को अपने शोरूम व गोदामों को अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिए मजबूर कर दिया है। 50-60 वर्षों से चल रहे इस उद्योग का भविष्य सरकार की नीतियों के ऊपर निर्भर करता है।

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परिचय: औद्योगीकरण का युग
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अध्याय 4: औद्योगीकरण का युग - परियोजना कार्य [पृष्ठ १०२]

APPEARS IN

एनसीईआरटी Social Science (History) - India and the Contemporary World 2 [Hindi] Class 10
अध्याय 4 औद्योगीकरण का युग
परियोजना कार्य | Q 1 | पृष्ठ १०२
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