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प्रश्न
निम्नलिखित गद्यांश पर ऐसे पाँच प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर एक-एक वाक्य में हो।
मेरा विश्वास है कि नेता गढ़े नहीं जाते। वे जन्म लेते हैं। नेता का असली लक्षण है कि वे भिन्न मतावलंबियों को आम संवेदना के जरिए इकट्ठा कर सकते हैं। यह काम स्वाभाविक क्षमतावश अपने आप संपन्न हो जाता है, कोशिश करके यह संभव नहीं है। पश्चिमी देश से प्रत्यावर्तन से कुछ पहले एक अंग्रेज मित्र ने मुझसे सवाल किया था, ‘‘स्वामी जी, चार वर्ष विलास की लीलाभूमि, गौरव के मुकुटधारी, महाशक्तिशाली पाश्चात्य भूमि पर भ्रमण के बाद मातृभूमि आपको कैसी लगेगी?’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘पाश्चात्य भूमि में आने से पहले मैं भारत से प्यार करता था। अब भारत भूमि का धूल कण तक मेरे लिए पवित्र है। भारत की वायु मेरे लिए पवित्रतायुक्त है। मेरे लिए वह देश अब तीर्थ-स्वरूप है।’’ इसके अलावा मेरे मन को अन्य कोई उत्तर नहीं सूझा। |
उत्तर
- लेखक के पश्चिमी देश से प्रत्यावर्तन से कुछ पहले किसने सवाल किया था?
- पाश्चात्य भूमि में आने से पहले लेखक किससे प्यार करते थे?
- स्वामी जी चार साल किस भूमि पर भ्रमण कर रहे थे?
- लेखक के लिए देश अब किसके स्वरूप है?
- लेखक के लिए क्या पवित्रतायुक्त है?
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संबंधित प्रश्न
निम्नलिखित परिच्छेद पढ़कर इसपर आधारित ऐसे पाँच प्रश्न तैयार कीजिए, जिनके उत्तर एक-एक वाक्य में हों :
विख्यात गणितज्ञ सी.वी. रमण ने छात्रावस्था में ही विज्ञान के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का सकि्का देश में ही नहीं विदेशों में भी जमा
लिया था।
रमन का एक साथी छात्र ध्वनि के संबंध में कुछ प्रयोग कर रहा था । उसे कुछ कठनिाइयाँ प्रतीत हुईं, संदेह हुए । वह अपने अध्यापक जोन्स साहब के पास गया परंतु वह भी उसका संदेह निवारण न कर सके । रमण को पता चला तो उन्होंने उस समस्या का अध्ययन-मनन किया और इस संबंध में उस समय के प्रसद्धि लॉर्डरेले के नबिंध पढ़े और उस समस्या का एक नया ही हल खोज नकिाला । यह हल पहले हल से सरल और अच्छा था। लाॅर्ड रेले को इस बात का पता चला तो उन्होंने रमण की प्रतिभा की भूरि-भूरि प्रशंसा की । अध्यापक जोन्स भी प्रसन्न हुए और उन्होंने रमण से इस प्रयोग के संबंध में लेख लिखने को कहा । रमण ने लेख लिखकर श्री जोन्स को दिया, पर जोन्स उसे जल्दी लौटा न सके । कारण संभवतः यह था कि वह उसे पूरी तरह आत्मसात न कर सके ।
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प्रश्न :
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निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर ऐसे चार प्रश्न तैयार कीजिए, जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हों :
एक बार भगवान बुदूध का एक प्रचारक घूम रहा था। उसे एक भिखारी मिला। वह प्रचारक उसे धर्म का उपदेश देने लगा। उस भिखारी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। उसमें उसका मन ही नहीं लगता था। प्रचारक नाराज हुआ। बुदूध के पास जाकर बोला, "वहाँ एक भिखारी बैठा है, मैं उसे इतने अच्छे-अच्छे सिखावन दे रहा था, तो भी वह सुनतां ही नहीं।" बुदूध ने कहा, "उसे मेरे पास लाओ।" यह प्रचारक उसे बुदूध के पास ले गया। भगवान बुद्ध ने उसकी दशा देखीं। उन्होंने ताड़ लिया कि भिखारी तीन-चार दिनों से भूखा है। उन्होंने उसे पेट भरकर खिलाया और कहा, “अब जाओ।'' प्रचारक ने कहा, "आपने उसे खिला तो दिया, लेकिन उपदेश कुछ भी नहीं दिया।" भगवान बुदूध ने कहा, "आज उसके लिए अन्न हीं उपदेश था। आज उसे अन्न की सबसे ज्यादा जरूरत थी। वह उसे पहले देना चाहिए। अगर वह जिएगा तो कल सुनेगा।" |
निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर ऐसे चार प्रश्न तैयार कीजिए जिसके उत्तर पद्यांश में एक-एक वाक्य में हों।
एक दिन राजा अचानक बीमार पड़ गए और उनकी तबीयत खराब होने लगी। महामंत्री ने वैद्य जी को दिखाया तो वैद्य जी कहने लगे कि राजा को अगर मैं सच बता दूँ तो वह मुझे सजा दे देगा। मंत्री ने पूछा “क्या बात है?” तब वैद्य ने कहा कि राजा शारीरिक रूप से काम नहीं करता है इसलिए बीमार रहता है। मंत्री ने राजा को इस बात की जानकारी दी। राजा अब किसान के रूप में काम करने लगा। थोड़े ही दिनों में वह स्वस्थ और प्रसन्न रहने लगा। उसने मंत्री को इस खुशी में इनाम दिया। |
निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर ऐसे चार प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हों -
पिता जी ने धोती ऊपर कर ली, कुरते की बाँहें चढ़ा लीं और अपना पहाड़ी मोंटा डंडा दाहिने हाथ से कंधे पर सँभाले, बायाँ हाथ तेजी से हिलाते, नंगे पाँव आगे बढ़े।उन्होंने उनके पास जाकर कहा, “मैं लड़ने नहीं आया हूँ। लड़ने को आता तो अपने साथ औरों को भी लाता। डंडा केवल आत्मरक्षा के लिए साथ है, कोई अकेला मुझे चुनौती देगा तो पीछे नहीं हटूँगा। मर्द की लड़ाई बराबर की लड़ाई है, चार ने मिलकर एक को पीट दिया तो क्या बहादुरी दिखाई।” |
आपके आसपास के किसी फौजी से मुलाकात के लिए प्रश्नावली तैयार कीजिए।
उपयुक्त प्रश्नचार्ट:
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निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर ऐसे चार प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हों:
वाणी ईश्वर द्वारा मनुष्य को दी गईं एक बड़ी देन है। वह मनुष्य के चिंतन का फलित है और उसका साधन भी। चिंतन के बगैरे वाणी नहीं और वाणी के बगैरे चिंतन नहीं और दोनों के बगैर मनुष्य नहीं। |