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प्रश्न
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर लिखिए -
'घर' जैसा छोटा-सा शब्द भावात्मक दृष्टि से बहुत विशाल होता है। इस आधार पर मकान, भवन, फ़्लैट, कमरा, कोठी, बँगला आदि इसके समानार्थी बिलकुल भी नहीं लगते हैं क्योंकि इनका सामान्य संबंध दीवारों, छतों और बाहरी व आंतरिक साज-सज्जा तक सीमित होता है, जबकि घर प्यार-भरोसे और रिश्तों की मिठास से बनता है। एक आदर्श घर वही है, जिसमें प्रेम व भरोसे की दीवारें, आपसी तालमेल की छतें, रिश्तों की मधुरता के खिले-खिले रंग, स्नेह, सम्मान व संवेदनाओं की सज्जा हो। घर में भावात्मकता है, वह भावात्मकता, जो संबंधों को महकाकर परिवार को जोड़े रखती है। यह बात हमें अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि जब रिश्ते महकते हैं, तो घर महकता है, प्यार अठखेलियाँ करता है, तो घर अठखेलियाँ करता है, रिश्तों का उल्लास घर का उल्लास होता है, इसलिए रिश्ते हैं, तो घर है और रिश्तों के बीच बहता प्रेम घर की नींव है। यह नींव जितनी मज़बूत होगी, घर उतना ही मज़बूत होगा। न जाने क्यों, आज का मनुष्य संवेदनाओं से दूर होता जा रहा है, उसके मन की कोमलता, कठोरता में बदल रही है; दिन-रात कार्य में व्यस्त रहने और धनोपार्जन की अति तीव्र लालसा से उसके अंदर मशीनियत बढ़ रही है, इसलिए उसके लिए घर के मायने बदल रहे हैं; उसकी अहमियत बदल रही है, इसी कारण आज परिवार में आपसी कलह, द्वंद्व आदि बढ़ रहे हैं। आज की पीढ़ी प्राइवेसी (वैयक्तिकता) के नाम पर एकाकीपन में सुख खोज रही है। उसकी सोच 'मेरा कमरा, मेरी दुनिया' तक सिमट गई है। एक छत के नीचे रहते हुए भी हम एकाकी होते जा रहे हैं। काश, सब घर की अहमियत समझें और अपना अहं हटाकर घर को घर बनाए रखने का प्रयास करें। |
(1) भावात्मक दृष्टी से घर जैसे छोटे-से शब्द की 'विशालता' में निहित हैं-
कथन पढ़कर सही विकल्प का चयन कीजिए -
कथन -
- प्रेम, विश्वास, नातों का माधुर्य व संवेदनाएँ
- आकर्षक बनावट, सुंदर लोग, वैभव व संपन्नता
- सुंदर रंग संयोजन, आंतरिक सजावट एवं हरियाली
- स्नेह, सम्मान, सरसता, संवेदनाएँ, संपन्नता व साज-सज्जा
विकल्प -
(क) कथन i सही है।
(ख) कथन i व ii सही है।
(ग) कथन ii व iii सही हैं।
(घ) कथन iii व iv सही हैं।
(2) सामान्य रूप में मकान, भवन, फ़्लैट, कमरा, कोठी आदि शब्दों का संबंध किससे होता है?
(क) हृदय की भावनाओं से
(ख) वैभव और समृद्धि से
(ग) स्थानीय सुविधाओं से
(घ) बनावट व सजावट से
(3) आज की पीढ़ी को सुख किसमें दिखाई दे रहा है?
(क) निजी जीवन व एकांतिकता में
(खं) पारिवारिक भावात्मक संबंधों में
(ग) बिना मेहनत सब कुछ मिल जाने में
(घ) धन कमाने के लिए जी तोड़ मेहनत करने में
(4) गद्यांश में प्रेम को घर का क्या बताया गया है?
(क) आभूषण
(ख) आधार
(ग) भरोसा
(घ) उल्लास
(5) कथन (A) और कारण (R) को पढ़कर उपयुक्त विकल्प चुनिए-
कथन (A) - आदमी के अंदर संवेदनाओं की जगह मशीनियत बढ़ती जा रही है।
कारण (R) - व्यस्तता और अर्थोपार्जन की अति महत्वाकांक्षा ने उसे यहाँ तक पहुँचा दिया है।
(क) कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
(ख) कथन (A) और कारण (R) दोनों ही गलत हैं।
(ग) कथन (A) सही है और कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या है।
(घ) कथन (A) सही है, किंतु कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या नहीं है।
उत्तर
(1) कथन i सही है।
(2) बनावट व सजावट से
(3) निजी जीवन व एकांतिकता में
(4) आधार
(5) कथन (A) सही है और कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या है।
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निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए:
रविशंकर जी भारत के जाने-माने सितार वादक व शास्त्रीय संगीतज्ञ हैं। उन्होंने बोटल्स व विशेष तौर पर जॉर्ज हैरीसन के सहयोग से भारतीय शास्त्रीय संगीत को, विदेशों तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई थी। उनका जन्म ०७ अप्रैल, १९२० को वाराणसी में हुआ। उनके बड़े भाई उदयशंकर एक प्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक थे। प्रारंभ में रविशंकर जी उनके साथ विदेश यात्राओं पर जाते रहे व कई नृत्य-नाटिकाओं में अभिनय भी किया। १९३८ में उन्होंने नृत्य कों छोड़कर संगीत को अपना लिया व मेहर घराने के उस्ताद अलाउद्दीन खाँ से सितार वादन का प्रशिक्षण लेने लगे। १९४४ में अपनो प्रशिक्षण समाप्त करने के बाद, उन्होंने आई. पी. टी. ए. में दाखिला लिया व बैले के लिए सुमधुर धुनें बनाने लगे। वे ऑल इंडिया रेडियो में वाद्यवृंद प्रमुख भी रहे। १९५४ में उन्होंने सर्वप्रथम सोवियत यूनियन में पहला विदेशी प्रदर्शन दिया। फिर एडिनबर्ग फेस्टिवल के अतिरिक्त रॉयल फे. स्टिवल हॉल में भी प्रदर्शन किया। १९६० के दर्शक में ब्रीटल्स के साथ काम करके उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की धूम विदेशों तक पहुँचा दी। वे १९८६ से १९९२ तक राज्य सभा के मनोनीत सदस्य रहे। १९९९ में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित, किया गया। उन्हें पद्मविभूषण, मैग्सेसे, ग्रेमी, क्रिस्टल तथा फूकुओका आदि अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हुए। उनकी पुत्री अनुष्का का जन्म १९८२ में, लंदन में हुआ। अनुष्का का पालन-पोषण दिल्ली व न्यूयार्क में हुआ। अनुष्काने पिता से सितार वादन सीखा व अल्प आयु में ही अच्छा कैरियर बना लिया। वे बहुप्रतिभाशाली कलाकर हैं। उन्होंने पिता को समर्पित करते हुए एक पुस्तक लिखी- ‘बापी, द लव ऑफ माई लाईफ।’ इसके अतिरिक्त उन्होंने एक फिल्म में भरतनाट्यम नर्तकी का रोल भी अदा किया। पंडित रविशंकर जी ने अनेक नए रागों की रचना की। सन् २००० में उन्हें तीसरी बार ग्रेमी-पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पंडित जी ने सही मायने में पूर्व तथा पश्चिमी संगीत के मध्य एक से हेतु कायम किया है। दिसंबर २०१२ में उनका स्वर्गवास हुआ। |
(१) तालिका पूर्ण कीजिए: (२)
रविशंकर जी को प्राप्त पुरस्कार
(१) | |
↓ | |
(२) | |
↓ | |
(३) | |
↓ | |
(४) |
(२) निम्नलिखित शब्दों का लिंग परिवर्तन कीजिए: (२)
- नर्तक - ______
- माता - ______
- पंडिताईन - ______
- पुत्र - ______
(३) ‘संगीत का जीवन में महत्व’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ५० शब्दों में लिखिए। (२)
निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
आकाश में बिजली की कौंधें बीच-बीच में लपक उठती थीं। बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर रामबोला को लगा कि मानों चैनसिंह ठाकुर अपने हलवाहा को डॉट रहे हैं। रामबोला अनायास ही ताव में आ गया। उठा और फिर नये श्रम की साधना में लग गया। दूसरे छप्पर के ढीले पड़ गए अंजर-पंजर को कसने के 'लिए पास ही खलार में उगी लंबी घास-पतवार उखाड़ लाया। रामबोला ने भिखारी बस्ती के और लोगों को जैसे घास बैँटकर रस्सी बनाते देखा था; वैसे ही बैंटने लगा। जैसे-तैसे रस्सियाँ बैंटी, जस-तस टट्टर बाँधा। अब जो उसकी आधी से अधिक उधड़ी हुई छावन पर ध्यान गया तो नन्हे मन के उत्साह को फिर' काठ मार गया। घास-फूस, ज्यौनारों में जूठन के साथ-साथ बाहर फेंकी गई पत्तलों और चिथड़े-गुदड़ों से 'बनाई गई वह छोटी -सी छपरिया फिर से छानें के लिए वह सामान कहाँ से जुटाए? हवा दूवारा उड़ाए हुए.माल वह इस बरसात में कहाँ-कहाँ ढूँढ़ैगा। दैव आज प्रलय की बरखा करके ही दम लेंगे। हवा के मारे औरों के छप्पर भी पेंगें ले रहे हैं। |
(1) लिखिए: (2)
गद्यांश में उल्लिखित प्राकृतिक घटक |
↓ |
____________ |
____________ |
____________ |
____________ |
(2) लिखिए:
(i) एक शब्द में उत्तर लिखिए : (1)
- हलवाहा को डाँटने वाला - ____________
- अनायास ही ताव में आने वाला - ____________
(ii) विशेषता लिखिए : (1)
- बिजली - ______
- बादल - ______
(3) 'विनाश और निर्माण प्रकृति के नियम हैं' इस विषय पर 30 से 40 शब्दों में अपने विचार लिखिए। (3)
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर इसके आधार पर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-
"एक भारत श्रेष्ठ भारत' अभियान देश के विभिन्न राज्यों में सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देता है। भारत एक अनोखा राष्ट्र है, जिसका निर्माण विविध भाषा, संस्कृति, धर्म के तानों- बानों, अहिंसा और न्याय के सिद्धान्तों पर आधारित स्वाधीनता संग्राम तथा सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास द्वारा एकता के सूत्र में बाँधकर हुआ हैं। हम इतिहास की बात करें या वर्तमान की भारतवर्ष में कला एवं संस्कृति का अनूठा प्रदर्शन हर समय एवं हर स्थान पर हुआ है। नृत्य, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला इत्यादि से समृद्ध भारत की पहचान पूरे विश्व में है। भारतीय वास्तुकला एवं मूर्तिकला की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इस कला की कहानी लगभग पॉँच हज़ार वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता से आरंभ होती है। इसके दो प्रमुख नगरों ; मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा में अच्छी सड़कें, दो मंज़िले मकान, स्नान-घर, पक्की ईंटों के प्रयोग के सबूत मिले हैं। गुजरात के लोथल नामक स्थान की खुदाई से पता चलता है कि वहाँ नावों से सामान उतारने के लिए 216 x 37 मीटर लम्बी-चौड़ी तथा 15 फीट गहरी गोदी बनी हुई थी। ये लोग मिट्टी, पत्थर, धातु, हड्डी, कॉँच आदि की मूर्तियाँ एवं खिलौने बनाने में कुशल थे। धातु से बनी एक मूर्ति में एक नारी को कमर पर हाथ रखे नृत्य मुद्रा में दर्शाया गया है। दूसरी मूर्ति पशुपतिनाथ शिव की तथा तीसरी मूर्ति दाढ़ी वाले व्यक्ति की है। ये तीनों मूर्तियाँ कला के सर्वश्रेष्ठ नमूने हैं। मूर्ति का श्रेष्ठ होना मूर्तिकार के कौशल पर निर्भर करता है। मूर्ति की प्रत्येक आवभंगिमा को दर्शाने में मूर्तिकार जी-जान लगा देता है। भारत के प्रत्येक कोने में इस प्रकार की विभिन्न कलाएँ हमारी संस्कृति में प्रतिबिंबित होती हैं। इस अतुलनीय निधि का बचाव और प्रचार-प्रसार ही एक भारत श्रेष्ठ भरत की परिकल्पना है। |
- भारत को 'अनोखा राष्ट्र' कहने से लेखक का तात्पर्य है-
(क) बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन
(ख) मूर्तिकला के सर्वश्रेष्ठ नमूने
(ग) संवेदनशील भारतीय नागरिक
(घ) विभिन्नता में एकता का प्रतीक - सिंधु घाटी की सभ्यता प्रतीक है-
(क) मूर्तिकार के कौशल का
(ख) एक भारत श्रेष्ठ भारत का
(ग) प्राचीन सुव्यवस्थित सभ्यता का
(घ) स्वाधीनता संग्राम के नायकों का - गद्यांश हमें संदेश देता है-
(क) कलाकार अपनी कला का श्रेष्ठ प्रदर्शन करता है।
(ख) भारतीय नृत्य और संगीत की कला विश्व प्रसिद्ध है।
(ग) भारतीय सभ्यता व संस्कृति का संरक्षण आवश्यक है।
(घ) स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारियों का विशेष योगदान है। - गदयांश में मूर्तियों का सविस्तार वर्णन दर्शाता है-
(क) सूक्ष्म अवलोकन एवं कला-प्रेम
(ख) प्राचीन मूर्तियों की भावभंगिमा
(ग) स्थूल अवलोकन एवं कला-प्रेम
(घ) सांस्कृतिक एकता एवं सौहार्द्र| - निम्नलिखित कथन (A) तथा कारण (R) को ध्यानपूर्वक पढ़िए। उसके बाद दिए गए विकल्पोंमें से कोई एक सही विकल्प चुनकर लिखिए।
कथन (A) भारतवर्ष में कला एवं संस्कृति का अनूठा प्रदर्शन हर समय हुआ है।
कारण (R) भारतीय वास्तुकला एवं मूर्तिकला की परंपरा अत्यंत प्राचीन है।
(क) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत है।
(ख) कथन (A) गलत है लेकिन कारण (R) सही है।
(ग) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।
(घ) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए।
संस्कृति और सभ्यता ये दो शब्द हैं और इनके अर्थ भी अलग-अलग हैं। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है, जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है, जिससे वह अपनी भीतरी उन्नति करता है और करुणा, प्रेम एवं परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज़, लंबी-चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक ये सभी सभ्यता की पहचान हैं और जिस देश में इनकी जितनी ही अधिकता है, उस देश को हम उतना ही सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति इन सबसे कहीं बारीक चीज़ है। वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है। मकान नहीं, मकान बनाने की रुचि है। संस्कृति धन नहीं, गुण है। संस्कृति ठाठ-बाट नहीं, विनय और विनम्रता है। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज़ है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण है जो हममें छिपा हुआ है। हमारे पास घर होता है, कपड़े होते हैं, मगर ये सारी चीज़ें हमारी सभ्यता के सबूत हैं, जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखलाई नहीं देती, वह बहुत ही सूक्ष्म और महीन चीज़ है और वह हमारी हर पसंद, हर आदत में छिपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है। लेकिन हम मकान का कौन-सा नक्शा पसंद करते हैं यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और मत्सर ये छह विकार प्रकृति के दिए हुए हैं। परंतु अगर ये विकार बेरोक-टोक छोड़ दिए जाएँ तो आदमी इतना गिर जाए कि उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाएगा। इसलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसकी संस्कृति भी उतनी ही ऊँची समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है कि वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब दो देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं, तब उन दोनों की संस्कृतियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। इसलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है, जिसने ज़्यादा-से-ज़्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो। |
(1) गद्यांश में ‘सभ्यता को बाहरी तरक्की’ बताया गया है क्योंकि यह - (1)
(क) इच्छापूर्ति में सक्षम है।
(ख) भौतिक साधनों की द्योतक है।
(ग) संस्कृति से भिन्न पहचान लिए है।
(घ) करुणा, प्रेम एवं परोपकार सिखाती है।
(2) सभ्यता और संस्कृति का मूलभूत अंतर क्रमशः है - (1)
(क) रेलगाड़ी, विनय
(ख) प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष
(ग) बाहरी तरक्की, भीतरी द्वंद्व
(घ) रिवाज़, सीख
(3) संस्कृति को ‘महीन चीज़’ कहने से लेखक सिद्ध करना चाहते हैं कि संस्कृति है - (1)
(क) अत्यंत तुच्छ
(ख) अति महत्वहीन
(ग) अत्यधिक उपयोगी
(घ) अति सर्वश्रेष्ठ
(4) निम्नलिखित वाक्यों में से सभ्यता के संदर्भ मैं कौन-सा वाक्य सही है? (1)
(क) सभ्यता मनुष्य के स्वाधीन चिंतन की गाथा है।
(ख) सभ्यता मानव के विकास का विधायक गुण है।
(ग) सभ्यता मानव को कलाकार बना देती है।
(घ) सभ्यता संस्कृति से अधिक महत्वपूर्ण है।
(5) संस्कृति की प्रवृत्ति है - (1)
(क) आदाय-प्रदाय
(ख) आदाय-प्राप्ति
(ग) क्रय-विक्रय
(घ) आबाद-बर्बाद
(6) ‘मकान के लिए नक्शा पसंद करना हमारी संस्कृति का परिचायक है।’ ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि - (1)
(क) घर हमारी सभ्यता की पहचान है।
(ख) अन्य लोगों से जोड़ने का माध्यम है।
(ग) नक्शे के बिना मकान बनाना कठिन है।
(घ) हमारी सोच-समझ को उजागर करता है।
(7) अन्य संस्कृतियों का लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास करना दर्शाता है - (1)
(क) समरसता
(ख) संपूर्णता
(ग) सफलता
(घ) संपन्नता
(8) मनुष्य की मनुष्यता इसी बात में निहित है कि वह - (1)
(क) सभ्यता और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करता रहे।
(ख) संस्कृति की समृद्धि के लिए कटिबद्धता बनाए रहे।
(ग) सभ्यता की ऊँचाई की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे।
(घ) मानसिक त्रुटियों पर नियंत्रण पाने के लिए चेष्टावान रहे।
(9) आदमी और जानवर का भेद समाप्त होना दर्शाता है - (1)
(क) सामाजिक असमानता
(ख) चारित्रिक पतन
(ग) सांप्रदायिक भेदभाव
(घ) अणुमात्रिक गिरावट
(10) सुसंस्कृत व्यक्ति से तात्पर्य है - (1)
(क) विकारग्रस्त व्यक्ति
(ख) विकासशील व्यक्ति
(ग) विचारशील व्यक्ति
(घ) विकारमुक्त व्यक्ति
निम्नलिखित अपठित परिच्छेद पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए-
जहाँ कोयल की मीठी वाणी सबका मन मोह लेती है, वहीं कौए को कर्कश आवाज किसी को अच्छी नहीं लगती । मधुर वचन न केवल सुनने वाले को, बल्कि बोलने वाले को भी आत्मिक शांति प्रदान करतें हैं। मनुष्य अपनी सद्भावनाओं का अधिकांश प्रदर्शन वचनों द्वारा ही करता है। मधुर वचन तप्त और दुःखी व्यक्ति का सही और सच्चा उपचार हैं। सहानुभूति के कुछ शब्द उसे इतना सुख देते हैं जितना संसार का कोई धनकोष नहीं दे पाता। मधुरभाषी शीघ्र ही सबका मित्र बन जाता है। लोग उसकी प्रशंसा करते हैं। यहाँ तक कि पराए भी अपने बन जाते हैं। इससे समाज में पारस्परिक सौहार्द की भावना पैदा होती है, लोग एक-दूसरे की सहायता के लिए तत्पर हो जाते हैं। सामाजिक मान-प्रतिष्ठा और श्रद्धा का आधार भी मधुर वाणी ही है। मधुर वचन किसी के मन को ठेस नहीं पहुँचाते, बल्कि दूसरे के क्रोध को शांत करने में सहायक होते हैं। मधुर वाणी में ऐसा आकर्षण है जो बिना रस्सी के सबको बाँध लेती है। अतः याद रखना चाहिए- ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए। |
(1) उत्तर लिखिए- (2)
गद्यांश के आधार पर मधुर वचन की विशेषताएँ लिखिए-
- ____________
- ____________
(2) “शब्द शस्त्र के समान होते हैं उनका सावधानी से उपयोग करना चाहिए" वचन पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए। (2)
निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
लालच ऐसी बुरी चीज है, जिसके फेर में पड़कर मानव मानवता को भूल जाता है। व्यकित किसी भी स्तर तक गिर जाता है। लालच इंसानियत का दुश्मन है। देशभक्ति की जगह गद्दारी करना लालच के तहत ही आता है। यदि व्यक्ति लालच न करे और संतोषपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करे तो उसे परमसुख की प्राप्ति हो सकती है। अफसोस कि आज जीवन के हर क्षेत्र में इनका बोलबाला है। पैसा ही आज ईश्वर है। मानवता आज इस लालच के बल पर कराह रही है। संतोष ही जीवन का आधार है। परंतु हमें यह याद रखना चाहिए कि हर लालच का परिणाम बुरा ही होता है। कहा भी गया है- रूखी-सूखी खाय के ठंडा पानी पीव। |
(1) उत्तर लिखिए- (2)
गद्यांश के आधार पर लालच के अभिशाप
- ______
- ______
(2) संतोष ही जीवन का आधार है, अपने विचार 25 से 30 शब्द में लिखें। (2)
निम्नलिखित अपठित परिच्छेद पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
आरा शहर। भादों का महीना। कृष्ण पक्ष की अँधेरी रात। जोरों की बारिश। हमेशा की भाँति बिजली का गुल हो जाना। रात के 'गहराने और सूनेपन को और सघन भयावह बनाती बारिश कौ तेज़ आवाज़। अंधकार में डूबा शहर तथा अपने घरें में सोए - दुबके लोग ! लेकिन सचदेव बाबू की आँखों में नींद नहीं। अपने आलीशान भवन के भीतर अपने शयनकक्ष में बेहद आरामदायक बिस्तर पर लेटे थे वे। पर लेटने भर से ही तो नींद नहीं आती। नींद के लिए - जैसी निर्शिचितता और बेफिक्री की जरुरत होती है, वह तो उनसे कोसों दूर थी। हालाँकि यह स्थिति सिर्फ सचदेव बाबू की ही नहीं थी। पूरे शहर का खौफ का यह कहर था। आए दिन चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार, राहजनी और अपहरण की घटनाओं ने लोगों को बेतरह भयभीत और असुरक्षित बना दिया था। कभी रातों में गुलज़ार रहने वाला उनका 'यह शहर अब शाम गहराते ही शमशानी सन्ताटे में तब्दील होने लगा था। अब रातों में सड़कों और गलियों में नज़र आने वाले लोग शहर के सामान्य और संभ्रांत नागरिक नहीं, संदिग्ध लोग होते थे। कब 'किसके यहाँ कया हो जाए, सब आतंकित थे। जब इस शहर में अपना यह घर बनवा रहे थे सचदेव बाबू तो बहुत प्रसन्न थे कि महानगरों में दमघोंटू, विषाक्त, अजनबीयत और छल - छदमी वातावरण से अलग इस शांत-सहज और निश्छल - निर्दोष गँँबई शहर में बस रहे हैं। लेकिन अब तो महानगर की अजनबीयत की अपेक्षा यहाँ की भयावहता ने बुरी तरह से न्रस्त और परेशान कर दिया था उन्हें। ये 'बरसाती रातें तो उन्हें बरबादी और तबाही का साक्षात संकेत जान पड़ती थीं। इसे दुर्योग कहें या विडंबना कि जिस बात को लेकर आदमी आशंकित बना रहता है, कभी-कभी वह बात घट भी जाती है। इस अंधेरी, तूफानी, बरसाती रात में जिस बात को लेकर डर रहे थे सचदेव बाबू उसका आभास भी अब उन्हें होने लगा था। उन्हें लगा आगंतुक की आहट होने लगी । उनकी शंका सही थी। अब दरवाजे पर थपथपाहट की आवाज़ भी आने लगी थी । सचमुच कोई आ धमका था। |
1. आकृति पूर्ण कीजिए: (2)
- आरा शहर में घर बनवाते समय ये बहुत प्रसन्न थे।
- सचदेव बाबू की आँखों में इसका नाम नहीं था।
- बरसाती रातें बरबादी और तबाही का साक्षात यह थी-
- सचदेव बाबू को लगा आगंतुक की आहाट होने लगी-
2. निम्नलिखित शब्दों का वचन बदलकर लिखिए: (2)
- आवाज - ______
- चोरी - ______
- शंका - ______
- सड़क - ______
3. चोरी, डकैती, राहजनी आदि की घटनाएँ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत स्पष्ट कीजिए। (2)
निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए:
एक बार अंग्रेजी के मशहूर साहित्यसेवी डॉ. जॉनसन के पास उनका एक मित्र आया और अफसोस जाहिर करने लगा कि उसे धार्मिक ग्रंथ पढ़ने के लिए समय ही नहीं मिलता। “क्यों?” डॉ. जॉनसन ने फौरन पूछा। “आप ही देखिए, दिन-रात मिलाकर सिर्फ चौबीस घंटे होते हैं, इसमें से आठ घंटे तो सोने में निकल जाते हैं।” “पर यह बात सब ही के लिए लागू है।” डॉ. जॉनसन ने कहा। “और करीब आठ ही घंटे ऑफिस में काम करना पड़ता है।” “और बाकी आठ घंटे?” डॉ. जॉनसन ने पूछा। “इन्हीं आठ घंटों में खाना-पीना, हजामत बनाना, नहाना-धोना, ऑफिस आना-जाना, मित्रों से मिलना-जुलना, चिट्ठी-पत्री का जबाब देना, इत्यादि कितने काम रहते हैं। मैं तो बड़ा परेशान हूँ।” “तब तो मुझे भी अब भूखों मरना पड़ेगा।” डॉ. जॉनसन एक गहरी साँस लेकर बोले। “क्यों? क्यों?” उनके मित्र ने तुरंत पूछा। “मैं काफी खाने वाला आदमी हूँ और अन्न उपजाने के लिए दुनिया में एक चौथाई ही तो जमीन है, तीन-चौथाई तो पानी ही है और संसार में मेरे जैसे करोड़ों लोग हैं जिन्हें अपना पेट भरना पड़ता है।” “पर इतने लोगों के लिए फिर तो भी जमीन काफी है।” “काफी कहाँ है? इस एक-चौथाई जमीन में कितने पहाड़ हैं, ऊबड़-खाबड़ स्थल हैं, नदी-नाले हैं, रेगिस्तान और बंजर भूमि हैं। अब मेरा भी कैसे निभ सकेगा भगवान! मित्र महोदय बड़ी हमदर्द के साथ डॉ. जॉनसन को दिलासा देने लगे कि उन्हे परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। दुनिया में करोड़ों लोग रहते आए हैं और उन्हें सदा अन्न मिलता ही रहा है।” |
(१) तालिका पूर्ण कीजिए: (२)
(२) परिच्छेद में आए हुए शब्दयुग्म के कोई भी चार उदाहरण ढूँढ़कर लिखिए: (२)
- ______
- ______
- ______
- ______
(३) ‘समय अनमोल है’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ५० शब्दों में लिखिए। (२)
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पी/वस्तुपरक प्रश्नों के उत्तर सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर लिखिए।
हमारे देश में हिंदी फ़िल्मों के गीत अपने आरंभ से ही आम दर्शक के सुख-दुख के साथी रहे हैं। वर्तमान समय में हिंदी फ़िल्मों के गीतों ने आम जन के हृदय में लोकगीतों सी आत्मीय जगह बना ली है। जिस तरह से एक जमाने में लोकगीत जनमानस के सुख-दुख, आकांक्षा, उल्लास और उम्मीद को स्वर देते थे, आज फ़िल्मी गीत उसी भूमिका को निभा रहे हैं। इतना ही नहीं देश की विविधता को एकता के सूत्र में बाँधने में हिंदी फ़िल्मों का योगदान सभी स्वीकार करते हैं। हिंदी भाषा की शब्द संपदा को समृद्ध करने का जो काम राजभाषा विभाग तत्सम शब्दों की सहायता से कर रहा है वही कार्य फ़िल्मी गीत और डायलॉग लिखने वाले विविध क्षेत्रीय भाषाओं के मेल से करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। यह गाने जन-जन के गीत इसी कारण बन सके क्योंकि इनमें राजनीति के उतार-चढ़ाव की अनुगूंजों के साथ देहाती कस्बायी और नए बने शहरों का देशज जीवन दर्शन भी आत्मसात किया जाता रहा है। भारत की जिस गंगा-जमुनी संस्कृति का महिमामंडन बहुधा होता है उसकी गूंज भी इन गीतों में मिलती है। आजादी की लड़ाई के दौरान लिखे प्रदीप के गीत हों या स्वाधीनता प्राप्ति साथ ही होनेवाले देश के विभाजन की विभीषिका, सभी को भी इन गीतों में बहुत संवेदनशील रूप से व्यक्त किया गया है। हिंदी फ़िल्मी गीतों के इस संसार में हिंदी-उर्दू का 'झगड़ा' भी कभी पनप नहीं सका। प्रदीप, नीरज जैसे शानदार हिंदी कवियों, इंदीवर तथा शैलेंद्र जैसे श्रेष्ठ गीतकारों और साहिर, कैफी, मजरूह जैसे मशहूर शायरों को हिंदी सिनेमा में हमेशा एक ही बिरादरी का माना जाता रहा है। यह सिनेमा की इस दुनिया की ही खासियत है कि एक तरफ गीतकार साहिर ने 'कहाँ हैं कहाँ हैं/मुहाफिज खुदी के/जिन्हें नाज है हिंद पर/वो कहाँ हैं' लिखा तो दूसरी तरफ उन्होंने ही 'संसार से भागे फिरते हो/भगवान को तुम क्या पाओगे !/ये भोग भी एक तपस्या है/तुम प्यार के मारे क्या जानोगे/अपमान रचयिता का होगा/रचना को अगर ठुकरा ओगे!' जैसी पंक्तियाँ भी रची हैं। परवर्तियों में गुलजार ऐसे गीतकार हैं जिन्होंने उर्दू, हिंदी, पंजाबी, राजस्थानी के साथ पुरबिया बोलियों में मन को मोह लेने वाले गीतों की रचना की है। बंदिनी के 'मोरा गोरा अंग लइले, मोहे श्याम रंग दइदे', 'कजरारे-कजरारे तेरे कारे-कारे नयना!', 'यारा सिली सिली रात का ढलना' और 'चप्पा चप्पा चरखा चले' जैसे गीतों को रचकर उन्होंने भारत की साझा संस्कृति को मूर्तिमान कर दिया है। वस्तुतः भारत में बनने वाली फिल्मों में आने वाले गीत उसे विश्व-सिनेमा में एक अलग पहचान देते हैं। ये गीत सही मायने में भारतीय संस्कृति की खूबसूरती को अभिव्यक्त करते हैं। |
- हिंदी फिल्मी गीतों और लोकगीतों में क्या समानता है?
A. ये लोगों के रीति-रिवाजों, उनकी लालसाओं उनकी सोच और कल्पनाओं को स्वर देते हैं।
B. ये लोगों के जीवन के अनुभवों, आमोद प्रमोद, विचारों और दर्शन को स्वर देते हैं।
C. ये लोगों के आनंद उनके शोक, उनके हर्ष और उनकी आशाओं को स्वर देते हैं।
D. ये लोगों के जीवन के यथार्थ और कठोरताओं में ज़िंदा रहने की चाह को स्वर देते हैं। - हिंदी भाषा की शब्द संपदा को समृद्ध करने का काम फिल्मी गीतों ने किस प्रकार किया?
A. राजभाषा विभाग से प्रेरणा पाकर
B. विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के मेल से
C. क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को प्रोत्साहित करके
D. विदेशी भाषाओं की फिल्मों को हतोत्साहित करके - कथन (A) और कारण (R) को पढ़कर उपयुक्त विकल्प चुनिए:
कथन (A): हिंदी फिल्मों के गाने जन जन के गीत बन गए हैं।
कारण (R): इन गीतों में राजनीति की अनुगूंजों के साथ, देहाती कस्बायी और नए बने शहरों का जीवन दर्शन थी आत्मसात किया जाता रहा है।
A. कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R) सही है।
B. कथन (A) और कारण (R) दोनों ही गलत हैं।
C. कथन (A) सही है और कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या है।
D. कथन (A) सही है, किंतु कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या नहीं है। - 'हिंदी फिल्मी गीतों के इस संसार में हिंदी-उर्दू का 'झगड़ा' भी कभी पनप नहीं सका।' उपर्युक्त कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्कों पर विचार कीजिए।
1. यहाँ सभी गीतकारों को एक ही बंधुत्व वर्ग का माना जाता है।
2. ये गीतकार सभी भाषाओं में समान रूप से गीत लिखते हैं।
3. इन गीतकारों में वैमनस्य व प्रतिस्पर्धा का भाव नहीं है।
A. 1 सही है।
B. 2 सही है।
C. 3 सही है।
D. 1 और 2 सही है। - उपर्युक्त गद्यांश में हिंदी फिल्मी गीतों की किस विशेषता पर सर्वाधिक बल दिया गया है?
A. ये गीत कलात्मक श्रेष्ठता व सर्वधर्म समभाव को अभिव्यक्त करते हैं।
B. ये गीत सांप्रदायिक सद्धाव को अभिव्यक्त करते हैं।
C. ये गीत पारस्परिक प्रेम व सद्भाव को अभिव्यक्त करते हैं।
D. ये गीत हमारी तहज़ीब की खूबसूरती को अभिव्यक्त करते हैं।
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर लिखिए -
कोलकाता भी दूसरे बड़े शहरों की तरह एक बड़ी नदी के किनारे बसा है। गंगा से निकली एक धारा ही है हुगली नदी। लेकिन दूसरे कई नगरों की तरह कोलकाता में नदी का बहाव एकतरफा नहीं है। हुगली ज्वारी नदी है और बंगाल की खाड़ी से उसका मुहाना 140 किलोमीटर की दूरी पर ही है। हर रोज़ ज्वार के समय समुद्र नदी के पानी को वापस कोलकाता तक ठेलता है। ज्वार और भाटे के बीच जल स्तर एक ही दिन में कई फुट ऊपर-नीचे हो जाता है। शहर के पश्चिम में बहने वाली हुगली नदी में कोलकाता अपना मैला पानी बहाकर उसे भुला नहीं सकता। नीचे बह जाने की बजाए क्या पता ज्वार के पानी के साथ अपशिष्ट पदार्थ वापस शहर लौट आएँ? शहर के कुल मैले पानी का एक छोटा-सा हिस्सा ही हुगली में बहाया जाता है, वह भी चोरी-छिपे। इसका परिणाम यह है कि कोलकाता में हुगली अधिक दूषित नहीं है। लेकिन हर बड़े शहर को अपना मैला पानी फेंकने के लिए एक नदी चाहिए। तो फिर कोलकाता का मैला कहाँ जाता है? हुगली से उल्टी दिशा में, शहर के पूरब में बहने वाली एक छोटी-सी नदी कुल्टीगंग में। पर नदी तक पहुँचने के पहले इस मैले पानी के बड़े हिस्से का उपचार होता है। कुल्टीगंग में गिरने वाला मैला पानी उतना दूषित नहीं होता है जितना वह शहर से निकलते समय होता है। यहाँ मैले पानी की सफाई का तरीका भी दूसरे शहरों से निराला है। कोई 30,000 एकड़ में फैले तालाब और खेत कोलकाता के कुल मैले पानी का दो-तिहाई हिस्सा साफ करते हैं। यही नहीं, इससे कई हज़ार लोगों को रोज़गार मिलता है मैले पानी से मछलियाँ, सब्जियाँ और धान उगाकर। इसका एक कारण है यहाँ का अनूठा भूगोल, जो बना है गंगा के मुहाने पर होने वाले मिट्टी और पानी के प्राकृतिक खेल से। पता नहीं कब से गंगा की बड़ी धार यहाँ से बहकर बंगाल की खाड़ी में विसर्जित होती थी। पर यह संगम केवल गंगा और बंगाल की खाड़ी भर का नहीं रहा है। छोटी-बड़ी कई नदियों की कई धाराएँ हिमालय की मिट्टी गाद या साद के रूप में लाकर यहाँ जमा करती रही हैं। कह सकते हैं कि यहाँ हिमालय और समुद्र मिलते हैं। |
- कोलकाता में बहने वाली किन-किन नदियों का उल्लेख अनुच्छेद में हुआ है?
- गंगा, कुल्टीगंग, यमुना
- गंगा, हुगली, उल्टीगंगा
- गंगा, यमुना, हुगली
- हुगली, गंगा, कुल्टीगंग
- गद्यांश आधारित निम्नलिखित कथनों को पढ़कर सही विकल्प का चयन कीजिए -
कथन
(क) हुगली नदी में जल-स्तर ज्वार और भाटे के अनुरूप ऊपर-नीचे होता रहता है।
(ख) कुल्टीगंग कोलकाता के पूरब में बहती है।
(ग) कोलकाता की अधिकतर नदियाँ उल्टी दिशा की ओर बहती हैं।
विकल्प- कथन (क) सही है।
- कथन (क) और (ख) सही हैं।
- कथन (ख) और (ग) सही हैं।
- कथन (ग) और (क) सही हैं।
-
कुल्टीगंग में गिरने वाला कोलकाता का मैला पानी उतना दूषित क्यों नहीं होता?
- क्योंकि वह पहले हुगली नदी में जाता है।
- कोलकाता के लोग पानी मैला नहीं करते।
- नदी में गिरने से पूर्व खेतों और तालाबों से उपचारित होता है।
- क्योंकि कुल्टीगंग स्वयं ही गंदगी को उपचारित कर लेती है।
-
निम्नलिखित कथन (A) और कारण (R) को पढ़कर उपयुक्त विकल्प चुनिए -
कथन (A): कोलकाता के बंगाल में बंगाल की खाड़ी में हिमालय और समुद्र मिलते हैं।
कारण (R): यहाँ गंगा और अन्य नदियाँ मिट्टी गाद या साद इकट्ठा करती हैं।- कथन (A) गलत है पर कारण (R) सही है।
- कथन (A) सही है पर कारण (R) गलत है।
- कथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं।
- कथन (A) और कारण (R) दोनों गलत हैं।
-
कोलकाता हुगली नदी में अपना मैला पानी क्यों नहीं बहा सकता?
- शहर में हुगली को पवित्र मानकर उसकी पूजा की जाती है।
- हुगली एक छोटी नदी है, मैला पानी बहाने लायक नहीं है।
- हुगली में समुद्र पानी वापस भेजता है, अपशिष्ट लौट सकता है।
- हुगली पश्चिम में बहती है, अपशिष्ट उस ओर लाना कठिन है।
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
कभी-कभी सहज से तेज़ गति में परिवर्तित होते क्रोध को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो उसके परिणाम उत्यंत घातक और पश्चाताप के भाव जगाने वाले हो सकते हैं। कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के मनोविश्लेषक टॉम जी. स्टीवेन्स ने अपनी किताब 'ओवरकम एंगर ऐंड एग्रेसन' में स्पष्ट किया है कि क्रोध-नियंत्रण का एक प्रमुख तरीका यह है कि स्थिति को अपने नहीं, दूसरों के नज़रिए से देखें। दूसरों को उन स्थितियों पर प्रकाश डालने के लिए प्रोत्साहित करें, क्षमा करना सीखें, बीते को बिसारने की आदत विकसित करें और किसी को चोट पहुँचाने के बजाए प्रशंसा से उसका मूल्यांकन करें। याद रखें, क्रोध-नियंत्रण से आप स्वयं शक्तिशाली बनाते हैं। इससे आपकी खुशहाली और स्मृतियों का विस्तार होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिनियाटी के वैज्ञानिकों ने अपनी किताब 50 साइंस ऑफ मेंटल इलनेस में इन कमज़ोरियों पर प्रकाश डालते हुए गुस्से को काबू में रखने के कारगर सूत्र दिए हैं। क्रोध-नियंत्रण से हम अपना ही नहीं, दूसरों के उजड़ते संसार को फिर से आबाद कर सकते हैं क्योंकि शांत मन सृजन में समर्थ होता है। हमारे सृजनात्मक होने से ही मानवता का हित सध सकता है। तो जब भी क्रोध आए, तो इन उपायों को आजमाएँ। जीवन में बिखरी हुई चीजों को सँवारने की ओर कदम खुद बढ़ चलेंगे। |
- क्रोध-नियंत्रण से होने वाले लाभों के संबंध में अनुपयुक्त कथन है।
(a) इससे व्यक्ति स्वयं को शक्तिशाली बनाता है।
(b) इससे व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है।
(c) इससे व्यक्ति की विस्मृतियों का विस्तार होता है।
(d) इससे व्यक्ति की रचनात्मकता में वृद्धि होती है। - किस तरह का क्रोध अंततः पश्चात्ताप का कारण बनता है?
(a) अत्यंत आवेग में किया गया क्रोध
(b) सहज भाव से किया गया क्रोध
(c) प्रायश्चित भाव से किया गया क्रोध
(d) आत्मघात भाव से किया गया क्रोध - मनोविश्लेषक स्टीवेन्स के अनुसार क्रोध पर काबू पाने पर सर्वोपयुक्त उपाय है।
(a) परिस्थितियों पर दूसरों के नियंत्रण को स्वीकार करना।
(b) परिस्थितियों पर पूरी तरह नियंत्रण स्थापित करना।
(c) परिस्थितियों को अपने नज़रिए से और अच्छे से समझना।
(d) परिस्थितियों को दूसरों के नज़रिए से जानने का प्रयास करना। - क्रोध आने पर क्या करना चाहिए?
(a) उसकी असहज अभिव्यक्ति
(b) उसकी सहज अभिव्यक्ति
(c) संयमित रहने का प्रयत्न
(d) घातक परिणाम का स्मरण - निम्नलिखित कथन (A) तथा कारण (R) को ध्यानपूर्वक पढ़िए। उसके बाद दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुनकर लिखिए:
कथन (A) - क्रोध नवसृजन का संहारक है।
कारण (R) - क्रोध अवस्था में क्षमाशीलता न्यून हो जाती है।
(a) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(b) कथन (A) सही है, लेकिन कारण (R) गलत है।
(c) कथन (A) सही है तथा कारण (R) उसकी सही व्याख्या है।
(d) कथन (A) सही है तथा कारण (R) उसकी सही व्याख्या नहीं है।
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
शोर से होने वाली बहरेपन की बीमारी एक गंभीर स्वास्थ्यगत समस्या है। तेज़ आवाज़ हमारी श्रवण कोशिकाओं पर बहुत दबाव डालती है, जिससे वे स्थायी रूप से चोटिल हो सकती हैं। यदि सुनने की क्षमता एकबार चली गई तो उसे पुनः पाना नामुमकिन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 'वर्ल्ड हीयरिंग रिपोर्ट' के मुताबिक विश्व की 1.5 अरब आबादी बहरेपन के साथ जी रही है। ध्वनि प्रदूषण दरअसल ऐसे अवांछित विद्युत चुंबकीय संकेत हैं, जो इंसान को कई रूपों में नुकसान पहुँचाते हैं। इसीलिए, शोर-प्रेरित बहरेपन पर फौरन ध्यान देने की ज़रूरत है। वैश्विक अध्ययन बताते हैं कि निर्माण कार्य, औद्योगिक कामकाज़, जहाज बनाने या मरम्त करने संबंधी काम, अग्निश्मन, नागरिक उड्डयन आदि सेवाओं में लगे श्रमिकों में शोर-प्रेरित बहरेपन का खतरा अधिक होता है। आकलन है कि 15 फीसदी नौजवान संगीत-कार्यक्रमों, खेल-आयोजनों और दैनिक कामकाज़ में होने वाले शोर से बहरेपन का शिकार होते हैं। शोर-प्रेरित बहरनेपन की समस्या विकासशील देशों में ज़्यादा है, जहाँ तीव्र औद्योगीकरण, अनौपचारिक क्षेत्र के विस्तार और सुरक्षात्मक व शोर-नियंत्रणरोधी उपायों की कमी से लोग चौतरफ़ा शोर-शराबे में दिन-बिताने को अभिशप्त हैं। हमें यह समझना ही होगा कि श्रवण-शक्ति का ह्रास न सिर्फ़ इंसान को प्रभावित करता है, बल्कि समाज पर भी नकारात्मक असर डालता है। |
- शोर-प्रेरित बहरेपन का खतरा किस क्षेत्र से जुड़े लोगों को कम है?
(a) जहाज-निर्माण से जुड़े लोगों को
(b) स्वास्थ्य-सेवाओं से जुड़े लोगों को
(c) खेल-आयोजनों से जुड़े लोगों को
(d) संगीत-कार्यक्रमों से जुड़े लोगों को - गद्यांश के संदर्भ में अनुपयुक्त कथन है -
(a) विकासशील देशों में अनौपचारिक क्षेत्र विस्तार की समस्या नहीं है।
(b) विकासशील देशों में शोर-निंयत्रणरोधी उपायों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है।
(c) कुछ सेवाओं से जुडे लोग अन्य की तुलना में बहरेपन के अधिक शिकार हैं।
(d) कुछ खास सेवाओं से जुड़े युवा भी आज बहरेपन का शिकार हो रहे हैं। - विकासशील देशों के लोगों के जीवन को अभिशप्त क्यों कहा गया है?
(a) उनका जीवन अनेक सामाजिक संकटों से घिरा है।
(b) उनका जीवन अनेक आर्थिक संकटों से घिरा है।
(c) वे खराब सेहत वाली विवश ज़िंदगी बसर करते हैं।
(d) वे शोर-शराबे से भी ज़िंदगी जीने को विवश हैं। - तीव्र आवाज़ का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(a) तंत्रिका-कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त
(b) श्रवण-कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त
(c) रक्त-कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त
(d) हृदय-कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त - निम्नलिखित कथन (A) तथा कारण (R) को ध्यानपूर्वक पढ़िए। उसके बाद दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुनकर लिखिए:
कथन (A) - वर्तमान में श्रवण शक्ति का ह्रास एक सार्वजनिक समस्या बन गई है।
कारण (R) - आर्थिक विकास की अनियमित होड़ इस समस्या के मूल कारणों में से एक है।
(a) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(b) कथन (A) सही है, लेकिन कारण (R) गलत है।
(c) कथन (A) सही है तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(d) कथन (A) सही है परंतु कारण (R) कथन (A) की गलत व्याख्या करता है।
निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए:
सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के बाद शनि ग्रह की कक्षा है। शनि सौरमंडल का दूसरा बड़ा ग्रह है। यह हमारी पृथ्वी के करीब 750 गुना बड़ा है। शनि के गोले का व्यास 116 हज़ार किलोमीटर है; अर्थात्, पृथ्वी के व्यास से करीब नौ गुना अधिक। सूर्य से शनि ग्रह की औसत दूरी 143 करोड़ किलोमीटर है। यह ग्रह प्रति सेकंड 9.6 किलोमीटर की औसत गति से करीब 30 वर्षों में सूर्य का एक चक्कर लगाता है। अत: 90 साल का कोई बूढ़ा आदमी यदि शनि ग्रह पर पहुँचेगा, तो उस ग्रह के अनुसार उसकी उम्र होगी सिर्फ तीन साल! हमारी पृथ्वी सूर्य से करीब 15 करोड़ किलोमीटर दूर है। तुलना में शनि ग्रह दस गुना अधिक दूर है। इसे दूरबीन के बिना कोरी आँखों से भी आकाश में पहचाना जा सकता है। पुराने ज़माने के लोगों ने इस पीले चमकीले ग्रह को पहचान लिया था। प्राचीन काल के ज्योतिषियों को सूर्य, चंद्र और काल्पनिक राहु-केतु के अलावा जिन पाँच ग्रहों का ज्ञान था उनमें शनि सबसे अधिक दूर था। शनि को 'शनैश्वर' भी कहते हैं। आकाश के गोल पर यह ग्रह बहुत धीमी गति से चलता दिखाई देता है, इसीलिए प्राचीन काल के लोगों ने इसे 'शनैःचर नाम' दिया था। 'शनैःचर' का अर्थ होता है - धीमी गति से चलने वाला। |
- तालिका पूर्ण कीजिए: [2]
प्राचीन ज्योतिषियों को इन ग्रहों का ज्ञान था। ↓ ↓ ↓ ↓ - परिच्छेद में आए हुए शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए: [2]
- शनि - ______
- दूरबीन - ______
- पृथ्वी - ______
- आकाश - ______
- 'अंतरिक्ष यात्रा' इस विषय पर ४० से ५० शब्दों में अपने विचार लिखिए। [2]
निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर ऐसे चार प्रश्न तैयार कीजिए, जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हों:
स्वाधीन भारत में अभी तक अंग्रेजी हवाओं में कुछ लोग यह कहते मिलेंगे – जब तक विज्ञान और तकनीकी ग्रंथ हिंदी में न हो तब तक कैसे हिंदी में शिक्षा दी जाए। जब कि स्वामी श्रद्धानंद स्वाधीनता से भी चालीस साल पहले गुरुकुल काँगड़ी में हिंदी के माध्यम से विज्ञान जैसे गहन विषयों की शिक्षा दे रहे थे। ग्रंथ भी हिंदी में थे और पढ़ाने वाले भी हिंदी के थे। जहाँ चाह होती है वहीं राह निकलती है। एक लंबे अरसे तक अंग्रेज गुरुकुल काँगड़ी को भी राष्ट्रीय आंदोलन का अभिन्न अंग मानते रहे। इसमें कोई संदेह भी नहीं कि गुरुकुल के स्नातकों में स्वाधीनता की अजीब तड़प थी। स्वामी श्रद्धानंद जैसा राष्ट्रीय नेता जिस गुरुकुल का संस्थापक हो और हिंदी शिक्षा का माध्यम हो; वहीं राष्ट्रीयता नहीं पनपेगी तो कहाँ पनपेगी। |
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow:
निम्नलिखित अकतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“परंतु मैं तो इस पक्ष में जरा भी नहीं हूँ। हमारी भारत सरकार हमारी पढ़ाई पर कितना पैसा खर्च करती है और हम चंद पैसों के कारण विदेशों में जा कर बस जाएँ? यादि सभी बुद्धिजीवी विदेशों में जाकर बस जाएँगें तो हमारे देश की उन्नति किस प्रकार संभव हो सकेगी।” |
- वक्ता इस समय किस से मिलने आई है? वक्ता के यहाँ आने का कारण भी बताइए। [2]
- इस समय यहाँ किस व्यक्ति के विषय में और क्या बात की जा रही है जिसे सुनकर वक्ता ने यह सब कहा था? [2]
- प्रस्तुत पंक्तियों के आधार पर वक्ता के चारित्र की 'तीन' विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। [3]
- विद्यार्थियों में अपने देश के बजाय विदेश में शिक्षा प्राप्त करने की बढ़ती चाह के कारण भविष्य में देश को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है? समझाकर लिखिए। [3]
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow:
निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“यह सब समय का फेर है, दीदी! मेरे भाग्य में यही सब लिखा था। मुझे एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई थी। मैं अपने को बहुत खुशनसीब समझ रहा था कि मुझे इतनी छोटी उम्र में ही नौकरी मिल गई।" |
- 'दीदी' कह कर किसे संबोधित किया गया है? वक्ता का संक्षिप्त परिचय दीजिए। [2]
- 'समय का फेर' किसे कहा जा रहा है और इस समय के फेर से वक्ता पर क्या प्रभाव पड़ा था? [2]
- 'दीदी' ने वक्ता की सहायता क्यों, कब और किस प्रकार से की थी? [3]
- अवतरण में दी गई पंक्तियों के आधार पर उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए कि मुसीबत में पड़े व्यक्ति की सहायता करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म और कर्तव्य होता है। [3]