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पहले पर्यावरण को किस तरह देखा जाता था? क्या अब सोच में कोई बदलाव आया है? चर्चा करें। - Social Science (सामाजिक विज्ञान)

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प्रश्न

पहले पर्यावरण को किस तरह देखा जाता था? क्या अब सोच में कोई बदलाव आया है? चर्चा करें।

संक्षेप में उत्तर

उत्तर

पहले पर्यावरण के प्रति सोच-

  1. पर्यावरण को मुफ्त की चीज माना जाता था।
  2. पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं थी।
  3. पहले पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत कम कानून थे और इन कानूनों को लागू करने की व्यवस्था भी काफी कमजोर थी।

पर्यावरण के प्रति सोच में बदलाव-

  1. पर्यावरण के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आया है और अब लोग पर्यावरण की चिंता करने लगे हैं।
  2. न्यायालयों ने अपने फैसलों में स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार को जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा माना है।
  3. सरकार ने भी सभी प्रकार के प्रदूषण को रोकने के लिए कानून बनाए हैं।
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पर्यावरण की रक्षा के लिए नए कानून
  क्या इस प्रश्न या उत्तर में कोई त्रुटि है?
अध्याय 10: कानून और सामाजिक न्याय - अभ्यास [पृष्ठ १३१]

APPEARS IN

एनसीईआरटी Civics [Hindi] Class 8
अध्याय 10 कानून और सामाजिक न्याय
अभ्यास | Q 9. | पृष्ठ १३१

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हाल के वर्षों में न्यायालयों ने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर कई कड़े आदेश दिए हैं। ऐसे कई आदेशों से लोगों की रोजी-रोटी पर भी बुरा असर पड़ा है।

मिसाल के तौर पर, अदालत ने आदेश दिया कि दिल्ली के रिहायशी इलाकों में काम करने वाले उद्योगों को बंद कर दिया जाए या उन्हें शहर से बाहर दूसरे इलाकों में भेज दिया जाए। इनमें से कई कारखाने आसपास के वातावरण को प्रदूषित कर रहे थे। इन कारखानों की गंदगी से यमुना नदी भी प्रदूषित हो रही थी, क्योंकि इन कारखानों को नियमों के हिसाब से नहीं चलाया जा रहा था।

अदालत की कार्रवाई से एक समस्या तो हल हो गई, लेकिन एक नई समस्या पैदा भी हो गईं कारखानों के बंद हो जाने से बहुत सारे मज़दूरों के रोजगार खत्म हो गए। बहुतों को दूर-दराज के इलाकों में जाना पड़ा। जहाँ उन कारखानों को दोबारा चालू किया गया था। अब प्रदूषण की समस्या इन नए इलाकों में पैदा हो रही है ये इलाके प्रदूषित होने लगे हैं। मजदूरों की सुरक्षा संबंधी स्थितियों का मुद्दा अभी भी वैसा का वैसा है।

भारत में पर्यावरणीय मुद्दों पर हुए ताज़ा अनुसंधानों से यह बात सामने आई है कि मध्य वर्ग के लोग पर्यावरण की चिंता तो करने लगे हैं, लेकिन वे अक्सर गरीबों की पीड़ा को ध्यान में नहीं रखते। इसलिए उनमें से बहुतों को यह तो समझ में आता है कि शहर को सुंदर बनाने के वास्ते बस्तियों को हटाना चाहिए या प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को शहर के बाहर ले जाना चाहिए, लेकिन यह समझ में नहीं आता कि इससे बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी भी खतरे में पड़ सकती है। जहाँ एक तरफ स्वच्छ पर्यावरण के बारे में जागरूकता बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ मजदूरों की सुरक्षा के बारे में लोग ज्यादा चिंता नहीं जता रहे हैं।

अब चुनौती ऐसे समाधान ढूंढने की है, जिनमें स्वच्छ वातावरण का लाभ सभी को मिल सके। इसका एक तरीका यह है कि हम कारखानों में ज्यादा स्वच्छ तकनीकों और प्रक्रियाओं को अपनाने पर जोर दें। इसके लिए सरकार को भी चाहिए कि वह कारखानों को प्रोत्साहन और मदद दे। उसे प्रदूषण फैलाने वालों पर जुर्माना करना होगा। इस तरह मजदूरों के रोजगार भी बच जाएँगे और समुदायों व मजदूरों को सुरक्षित पर्यावरण का अधिकार भी मिल जाएगा। 

क्या आपको लगता है कि ऊपर उद्धत मामले में सभी पक्षों को न्याय मिला है?


क्या आपको पर्यावरण की रक्षा के और तरीके दिखाई देते हैं? कक्षा में चर्चा करें।


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