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उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का सुधारकों के लिए क्या मतलब था? - Social Science (सामाजिक विज्ञान)

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प्रश्न

उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का सुधारकों के लिए क्या मतलब था?

संक्षेप में उत्तर

उत्तर

  1. उन्नीसवीं सदी में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने सुधारकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण साधन का कार्य किया।
  2. उन्होंने अपने लेखन व मुद्रण से जनता को समाज में व्याप्त बुराइयों व कुरीतियों से लड़ने व इन्हें बदलने के लिए तैयार किया।
  3. उन्नीसवीं सदी के अंत तक जाति-भेद के बारे में तरह-तरह की पुस्तिकाओं और निबंधों में लिखा जाने लगा था। ‘निम्न जातीय’ आंदोलनों के मराठी प्रणेता, ज्योतिबा फुले ने अपनी गुलामगिरी में जाति-प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।
  4. बाद में भीमराव अंबेडकर व पेरियार जैसे सुधारकों ने जाति पर जोरदार कलम चलाई, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने की मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।
  5. इस तरह सुधारकों के लिए मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने एक साधन के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें
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अध्याय 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया - संक्षेप में लिखें [पृष्ठ १२८]

APPEARS IN

एनसीईआरटी Social Science (History) - India and the Contemporary World 2 [Hindi] Class 10
अध्याय 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
संक्षेप में लिखें | Q 3. (ग) | पृष्ठ १२८
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