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1917 में ज़ार का शासन क्यों खत्म हो गया? - Social Science (सामाजिक विज्ञान)

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प्रश्न

1917 में ज़ार का शासन क्यों खत्म हो गया?

थोडक्यात उत्तर

उत्तर

जनता के बढते अविश्वास एवं ज़ार की नीतियों से असंतुष्टि के कारण ज़ार का शासन 1917 में खत्म हो गया। ज़ार निकोलस द्वितीय ने राजनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी, मतदान के नियम बदल डाले और अपनी सत्ता के विरुद्ध उठे सवालों अथवा नियंत्रण को खारिज कर दिया। रूस में युद्ध प्रारंभ में बहुत लोकप्रिय था और जनता ज़ार का साथ देती थी। जैसे-जैसे युद्ध जारी रहा, ज़ार ने ड्यूमा के प्रमुख दलों से सलाह लेने से मना कर दिया। इस प्रकार उसने समर्थन खो दिया और जर्मन विरोधी भावनाएँ प्रबल होने लगीं। जारीना अलेक्सान्द्रा के सलाहकारों विशेषकर रास्पूतिन ने राजशाही को अलोकप्रिय बना दिया। रूसी सेना लड़ाइयाँ हार गई। पीछे हटते समय रूसी सेना ने फसलों एवं इमारतों को नष्ट कर दिया। फसलों एवं इमारतों के विनाश से रूस में लगभग 30 लाख से अधिक लोग शरणार्थी हो गए जिससे हालात और बिगड़ गए।

प्रथम विश्व युद्ध का उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ा। बाल्टिक सागर के रास्ते पर जर्मनी का कब्जा हो जाने के कारण माल का आयात बंद हो गया। औद्योगिक उपकरण बेकार होने लगे तथा 1916 तक रेलवे लाइनें टूट गई। अनिवार्य सैनिक सेवा के चलते सेहतमंद लोगों को युद्ध में झोंक दिया गया जिसके परिणामस्वरूप, मजदूरों की कमी हो गई। रोटी की दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गई। 26 फरवरी 1917 को ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया गया। यह आखिरी दांव साबित हुआ और इसने जार के शासन को पूरी तरह जोखिम में डाल दिया। 2 मार्च 1917 को जार गद्दी छोड़ने पर मज़बूर हो गया और इससे निरंकुशता का अंत हो गया।

किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार का अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। किसानों में जमीन की भूख प्रमुख कारक थी। विभिन्न दमनकारी नीतियों तथा कुंठा के कारण वे आमतौर पर लगान देने से मना कर देते और प्रायः जमींदारों की हत्या करते।

कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं ने भी लोगों को विद्रोह के लिए उत्साहित किया।

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पेत्रोग्राद में फरवरी क्रांति
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पाठ 2: यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति - प्रश्न [पृष्ठ ४८]

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एनसीईआरटी Social Science - India and the Contemporary World 1 [Hindi] Class 9
पाठ 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
प्रश्न | Q 3. | पृष्ठ ४८
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