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प्रश्न
निम्नलिखित विषय पर संकेत बिंदुओं के आधार पर लगभग 120 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए:
परोपकार ही सच्चा धर्म है
संकेत बिंदु:
- परोपकार का अर्थ
- मनुष्य का उत्तम गुण
- प्रकृति से उदाहरण
- सच्चे आनंद का स्रोत
उत्तर
परोपकार ही सच्चा धर्म है
परोपकार का अर्थ है निःस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई करना और उनकी सहायता करना। यह एक ऐसा गुण है, जिसमें व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के समाज और जरूरतमंदों के कल्याण के लिए काम करता है। यह मनुष्य का उत्तम गुण है, क्योंकि इससे समाज में प्रेम, करुणा, और आपसी सहयोग की भावना का विकास होता है। परोपकारी व्यक्ति न केवल दूसरों का जीवन बेहतर बनाता है, बल्कि अपने जीवन को भी सार्थक बनाता है। समाज में सौहार्द और शांति तभी स्थापित हो सकती है, जब लोग परोपकार की भावना से प्रेरित होकर एक-दूसरे की मदद करें। निःस्वार्थ सेवा ही परोपकार या परमार्थ की श्रेणी में आती है। ईश्वर भी प्रकृति के माध्यम से हमें यही संदेश देते हैं। पृथ्वी, नदी, वृक्ष, सूर्य, चंद्रमा आदि विषम परिस्थितियों में भी परोपकार की भावना नहीं छोड़ते। तुलसीदास जी ने परोपकार की महिमा को इन शब्दों में व्यक्त किया है।
'परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।'
महर्षि दधीचि, राजा रंतिदेव, सुकरात, ईसा मसीह, गुरु गोविंद सिंह, महात्मा गांधी और कई देशभक्तों ने लोककल्याण के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। इसलिए वे आज हमारे प्रेरणा स्रोत और पूजनीय हैं। परोपकार ही वह गुण है जो मनुष्य को अन्य जीवों से श्रेष्ठ बनाता है। इसके बिना व्यक्ति का जीवन पशु के समान हो जाता है। परोपकार ऐसा गुण है, जिसे अपनाने से दूसरों के साथ-साथ हमारा भी भला होता है। सच्चे आनंद का स्रोत भी परोपकार में ही छिपा है। दूसरों की सहायता करने से जो आत्मिक संतोष और शांति प्राप्त होती है, वह धन या भौतिक सुख-सुविधाओं से नहीं मिल सकती। परोपकार न केवल दूसरों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है, बल्कि व्यक्ति को जीवन की गहराइयों से जोड़कर उसे वास्तविक आनंद का अनुभव कराता है। इसलिए, सही मायनों में परोपकार ही सच्चा धर्म है, जो मानवता को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है।