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Question
अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान हम कैसे कर सकते हैं?
Solution
अधिगम अशक्तता यह एक सामान्य पद है। इसका अर्थ विभिन प्रकार के उन विकारों के समूह से है, जिनके कारण किसी व्यक्ति में सीखने, पढ़ने, लिखने, बोलने, तर्क करने तथा गणित के प्रश्न हल करने आदि में कठिनाई होती है। इन विकारों के स्त्रोत बच्चे में जन्मजात रूप से पाए जाते हैं। ऐसा माना किया जाता कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यविधि में समस्याओं के कारण अधिगम अशक्तता पाई जाती है। अधिगम अशक्तता के साथ -साथ किसी बच्चे में शारीरिक अक्षमता, संवेदी अक्षमता, मानसिक मंदन भी हो सकता है या अधिगम अशक्तता इनके बिना भी हो सकती है।
बच्चों में पाई जाने वाली अधिगम अशक्तता एक अलग प्रकार की अक्षमता है, जो उन बच्चों में पाई जा सकती है, जो सामान्य से श्रेष्ठ बुद्धि वाले, सामान्य संवेदी प्रेरक तंत्र वाले हैं तथा जिनको सीखने के पर्याप्त अवसर प्राप्त होते हैं। यदि अधिगम अशक्तता का समुचित प्रबंध नहीं किया जाए तो यह जीवनपर्यंत बनी रहती है और व्यक्ति के आत्म-सम्मान, पेशा, सामाजिक संबंधो तथा दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं को प्रभावित करती है।
अधिगम अशक्तता के लक्षण -
अधिगम अशक्तता के अनेक लक्षण हैं। अधिगम अशक्तता वाले बच्चों में ये लक्षण भिन्न-भिन्न संयोजनों में प्रकट होते हैं। चाहे उनकी बुद्धि, अभिप्रेरणा तथा अधिगम के लिए किया गया परिश्रम कुछ भी हो।
- अक्षरों, शब्दों तथा वाक्यांशों को लिखने में, लिखी हुई सामग्री को पढ़ने में, तथा बोलने में बहुधा कठिनाई पाई जाती है। यद्यपि उनमें श्रवण दोष नहीं होता है तथापि उनमें सुनने की समस्याएँ पाई जाती हैं। ऐसे बच्चे सीखने के लिए योजना बनाने या इसके लिए कोई उपाय खोजने में अन्य बच्चों की अपेक्षा बहुत भिन्न होते हैं।
- अधिगम अशक्तता वाले बच्चों में अवधान से जुड़े विकार पाए जाते हैं। वे किसी एक विषय पर देर तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते तथा उनका ध्यान शीघ्र ही टूट जाता है। अवधान की इस कमी के कारण अनेक बार उनमें अतिक्रिया उत्पन्न हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप वे हमेशा गतिशील रहते हैं, कुछ न कुछ करते रहते हैं तथा विभिन्न सामानों को अनवरत रूप से इधर उधर हटाते रहते हैं।
- अधिगम अशक्तता वाले बच्चों में स्थान व समय की समझदारी की कमी आम लक्षण हैं। ये नई जगहों को आसानी से नहीं पहचान पाते और अक्सर खो जाते हैं। कालबोध की कमी के कारण ये अपने काम के स्थान पर या तो समय से पहले या फिर बहुत विलंब से पहुंचते हैं। इसी तरह इनमें दिशाबोध की भी कमी होती है। ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं आदि में भेद करते हुए कार्य करने में इनसे अक्सर गलतियाँ होती हैं।
- अधिगम अशक्तता वाले बच्चों का पेशीय समन्वय तथा हस्त-निपुणता अपेक्षाकृत निम्न कोटि का होता है। यह उनके शारीरिक संतुलन के अभाव, पेंसिल को नुकीला करने तथा दरवाजे का दस्ता पकड़ने में अक्षमता एवं साइकिल चलना सीखने में कठिनाई से स्पष्ट होता है।
- ये बच्चे काम करने के मौलिख अनुदेशों को समझने और अनुसरण करने में असफल होते हैं।
- सामाजिक संबंधों का मूल्यांकन भी ये ठीक से नहीं कर पाते। उदहारण के लिए, ये नहीं जान पाते की कौन सा सहपाठी इनका अधिक मित्र है और तटस्थ कौन है। ये शरीर भाषा को सीखने एवं समझने में भी अक्षम होते है।
- अधिगम अशक्तता वाले बच्चों में आमतौर से प्रत्यक्षिक विकार भी पाए जाते हैं। दृष्ठि, श्रवण, स्पर्श तथा गति से जुड़े संकेतों का प्रत्यक्षण करने में इनसे अधिक त्रुटियों होती हैं। ये दरवाजे की घंटी तथा फोन की घंटी में विभेद करने में असफल होते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि इनमें संवेदी तीक्षणता नहीं होती है। ये सिर्फ निष्पादन में इनका उपयोग करने में असफल रहते हैं।
- अधिगम अशक्तता वाले अधिकांश बच्चों में पठनवैकल्य (dysrexia) के लक्षण पाए जाते हैं। ये बहुत बार अक्षर और शब्दों कि नकल नहीं कर पाते हैं; जैसे - कमर तथा रकम में, सपूत और कपूत में, 'ट' तथा 'ठ', 'प' तथा 'फ' में अंतर करना इनके लिए बहुत कठिन होता है। ये शब्दों को वाक्यों के रूप में संगठित करने में अपेक्षाकृत अक्षम होते हैं।
ऐसा सोचना गलत है कि अधिगम अशक्तता वाले बच्चों का इलाज नहीं हो सकता हैं। उपचारी अध्यापन विधि के उपयोग से बहुत लाभ होता है और कक्षा में ये अन्य बच्चों की तरह हो सकते हैं। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने ऐसी शिक्षण विधियों का विकास किया है जिनसे अधिगम अशक्तता वाले बच्चों में पाए जाने वाले अनेक लक्षणों को दूर किया जा सकता है।