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Question
बाँस की बुनाई कैसे होती है?
Solution
बाँस की बुनाई वैसी ही होती है जैसे कोई और बुनाई। पहले खपच्चियों को आड़ा-तिरछा रखा जाता है, फिर बाने को। बारी-बारी से ताने से ऊपर-नीचे किया जाता है। इससे चेक का डिजाइन बनता है। पलंग की निवाड़ की बुनाई की तरह। टोकरी के सिरे पर खपच्चियों को या तो चोटी की तरह गूंथ लिया जाता है या फिर कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फँसा दिया जाता है।
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कल गैरों की खातिर की, आज अपनी खातिर करना”-
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निजवाचक सर्वनाम के तीन प्रकार होते हैं जो नीचे दिए वाक्यों में रेखांकित हैं-
मैं अपने आप (या आप) घर चली जाऊँगी।
बब्बन अपना काम खुद करता है।
सुधा ने अपने लिए कुछ नहीं खरीदा।
अब तुम भी निजवाचक सर्वनाम के निम्नलिखित रूपों का वाक्यों में प्रयोग करो।
- अपने को
- अपने से
- अपना
- अपने पर
- अपने लिए
- आपस में
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प्राकृतिक संसाधन | दैनिक उपयोग की वस्तुएँ |
चमड़ा | ________________ |
घास के तिनके | ________________ |
पेड़ की छाल | ________________ |
गोबर | ________________ |
मिट्टी | ________________ |
इस पाठ में कई हिस्से हैं जहाँ किसी काम को करने का तरीका समझाया गया है; जैसेछोटी मछलियों को पकड़ने के लिए इसे पानी की सतह पर रखा जाता है या फिर धीरे-धीरे चलते हुए खींचा जाता है। बाँस की खपच्चियों को इस तरह बाँधा जाता है कि वे शंकु का आकार ले लें। इस शंकु का ऊपरी सिरा अंडाकार होता है। निचले नुकीले सिरे पर खपच्चियाँ एक-दूसरे में गॅथी हुई होती हैं।
इस वर्णन को ध्यान से पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर अनुमान लगाकर दो। यदि अंदाज लगाने में दिक्कत हो तो आपस में बातचीत करके सोचो-
(क) बाँस से बनाए गए शंकु के आकार का जाल छोटी मछलियों को पकड़ने के लिए ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है?
(ख) शंकु का ऊपरी हिस्सा अंडाकार होता है तो नीचे का हिस्सा कैसा दिखाई देता है?
(ग) इस जाल से मछली पकड़ने वालों को धीरे-धीरे क्यों चलना पड़ता है?