English

भ्रम क्यों उत्पन्न होते हैं? - Psychology (मनोविज्ञान)

Advertisements
Advertisements

Question

भ्रम क्यों उत्पन्न होते हैं?

Long Answer

Solution

मानवीय प्रत्यक्षण सर्वदा तथ्यानुकूल नहीं होते हैं। कभी-कभी हम संवेदी सूचनाओं की उचित व्याख्या नहीं कर पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप भौतिक उद्दीपक एवं उसके प्रत्यक्षण में सुमेल नहीं हो पाता। हमारी ज्ञानेंद्रियों से प्राप्त सूचनाओं की गलत व्याख्या से उत्पन्न गलत प्रत्यक्षण को सामान्यतया भ्रम कहते हैं। कम या अधिक हम सभी इसका अनुभव करते हैं। ये बाह्य उद्दीपन की स्थिति में उत्पन्न होते हैं और समान रूप से प्रत्येक व्यक्ति इसका अनुभव करता है। इसलिए, प्रम को 'आदिम संगठन' भी कहा जाता है। यद्यपि भ्रम का अनुभव हमारे किसी भी ज्ञानेंद्रिय के उद्दीपन से हो सकता है, तथापि मनोवैज्ञानिकों ने अन्य संवेदी प्रकारताओं की तुलना में चाक्षुष भ्रम का अधिक अध्ययन किया है।

कुछ प्रात्यक्षिक भ्रम सार्वभौम होते हैं और सभी लोगों में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, रेल की पटरियाँ, आपस में मिलती हुई सभी को दिखाई देती हैं। ऐसे भ्रमों को सार्वभौम अथवा स्थायी भ्रम कहते हैं, क्योंकि ये अनुभव अथवा अभ्यास से परिवर्तित नहीं होते हैं। कुछ अन्य भ्रम एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में परिवर्तित होते रहते हैं। इन्हें 'वैयक्तिक भ्रम' कहते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण चाक्षुष भ्रम निम्नलिखित हैं

ज्यामितीय भ्रम : नीचे दिए गए चित्र में मूलर-लायर भ्रम प्रदर्शित किया गया है।

मूलर-लायर भ्रम

हम सभी 'अ' रेखा को 'ब' रेखा की तुलना में छोटी देखते हैं, जबकि दोनों रेखाएँ समान हैं। यह भ्रम बच्चों द्वारा भी अनुभव किया जाता है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि पशु भी कुछ कम या अधिक हम लोगों की तरह ही इस भ्रम का अनुभव करते हैं। मूलर-लायर भ्रम के अतिरिक्त, मानव जाति (पक्षी एवं पशु) द्वारा . कई अन्य चाक्षुष भ्रमों का भी अनुभव किया जाता है। नीचे दिए गए चित्र में हम ऊर्ध्वाधर एवं क्षेतिज रेखाओं का भ्रम देख सकते हैं। यद्यपि दोनों रेखाएँ समान हैं, फिर भी हम क्षैतिज रेखा की तुलना में ऊर्ध्वाधर रेखा का प्रत्यक्षण बड़ी रेखा के रूप में करते हैं।

ऊर्ध्वधिर-क्षेतिज भ्रम

आमासी गतिभ्रम : जब कुछ गतिहीन चित्रों को एक के बाद दूसरा करके एक उपयुक्त दर से प्रक्षेपित किया जाता है तो हमें इस भ्रम का अनुभव होता है। इस भ्रम को फाई-घटना (Phi -phenomenon) कहा जाता है। जब हम गतिशील चित्रों को सिनमा में देखते हैं तो हम इस प्रकार के भ्रम से प्रभावित होते हैं। जलते - बुझते बिजली की रोशनी के अनुक्रमण से भी इस प्रकार का भ्रम उत्पन्न होता है। एक अनुक्रम में दो या दो से अधिक बत्तियों को एक यंत्र की सहायता से प्रस्तुत करके प्रायोगिक रूप से इस घटना का अध्ययन किया जा सकता है। वर्दीमर ने दूयुति, आकार, स्थानिक अंतराल एवं विभिन्न बत्तियों की कालिक सन्रिधि के उपयुक्त स्तरों की उपस्थिति को महत्त्वपूर्ण माना है। इनकी अनुपस्थिति में प्रकाश - बिंदु गतिशील नहीं दिखते हैं। ये एक बिंदु अथवा एक के बाद दूसरा प्रकट होने वाले विभिन्न बिंदुओं के रूप में दिखाई देंगे परंतु इनसे गति का अनुभव नहीं होगा।

भ्रमों के अनुभव से ज्ञात होता है कि संसार जैसा है लोग इसे सदा उसी रूप में नहीं देखते हैं, बल्कि वे इसके में व्यस्त रहते हैं। कभी-कभी यह उद्दीपकों के लक्षणों पर आधारित होता है और कभी-कभी एक विशेष पर्यावरण में उनके अनुभवों पर आधारित होता है।

shaalaa.com
भ्रम
  Is there an error in this question or solution?
Chapter 5: संवेदी, अवधानिक एवं प्रात्यक्षिक प्रक्रियाएँ - समीक्षात्मक प्रश्न [Page 110]

APPEARS IN

NCERT Psychology [Hindi] Class 11
Chapter 5 संवेदी, अवधानिक एवं प्रात्यक्षिक प्रक्रियाएँ
समीक्षात्मक प्रश्न | Q 10. | Page 110
Share
Notifications

Englishहिंदीमराठी


      Forgot password?
Use app×