Advertisements
Advertisements
Question
कविता में मेघ को 'पाहुन' के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ अतिथि (दामाद) को विशेष महत्व प्राप्त है, लेकिन आज इस परंपरा में परिवर्तन आया है। आपको इसके क्या कारण नज़र आते हैं, लिखिए।
Solution
हमारी संस्कृति में अतिथि को देव तुल्य माना जाता रहा है - 'अतिथि देवो भव:'। परन्तु आज के समाज में इस विषय को लेकर बहुत परिवर्तन आए हैं। इसका प्रमुख कारण भारत में पाश्चात्य संस्कृति का आगमन है। पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करते-करते आज का मनुष्य इतना आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है कि उसके पास दूसरों के लिए समय का अभाव हो गया है। इसी कारण आज संयुक्त परिवार की संख्या धीरे-धीरे घटती जा रही है। ऐसी अवस्था में अतिथि का सत्कार करने की परम्परा प्राय: लुप्त होती जा रही है।
APPEARS IN
RELATED QUESTIONS
ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
कवयित्री किसे साहब मानती है? वह साहब को पहचानने का क्या उपाय बताती है?
कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि 'काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?' कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
कवि ने किसकी वेदना को बोझ के समान बताया है और क्यों?
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
धरती रोमांचित-सी क्यों लगती है? यह रोमांच किस तरह प्रकट हो रहा है?
‘चंद्रगहना से लौटती बेर’ कविता ने साधारण-सी वस्तुओं में भी अपनी कल्पना से अद्भुत सौंदर्य का दर्शन किया है। स्पष्ट कीजिए।
कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए।
काव्य-सौंदर्य लिखिए -
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सवँर के।
कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई?