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कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ। - Social Science (सामाजिक विज्ञान)

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Question

कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।

Answer in Brief

Solution

कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित थे। उन्हें आशंका थी कि न जाने इसका आम लोगों के जेहन पर क्या असर हो। भय था कि अगर छपे हुए किताबों पर कोई नियंत्रण न होगा तो लोगों में बागी और अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे। अगर ऐसा हुआ तो ‘मूल्यवान’ साहित्य की सत्ता ही नष्ट हो जाएगी।

उदाहरण के लिए यूरोप में लातिन के विद्वान और कैथलिक धर्म सुधारक इरैस्मस ने लिखा कि ‘किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन-सा कोना है जहाँ ये नहीं पहुँच जाती? हो सकता है कि जहाँ-तहाँ ये एकाध जानने लायक चीजें भी बताएँ, लेकिन इनका ज़यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। ये बेकार का ढेर है, इनसे बचना चाहिए। मुद्रक दुनिया को तुच्छ, बकवास, बेवकूफ़, सनसनीखेज, धर्म-विरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबों से पाट रहे हैं और उनकी तादाद ऐसी है कि मूल्यवान सहित्य का मूल्य भी नहीं रह जाता।’

इसी तरह भारत में भी दकियानूसी मुसलमानों का मानना था कि औरतें उर्दू के रूमानी अफ़साने पढ़कर बिगड़ जाएँगी। वहीं दकियानुसी हिंदू मानते थे कि किताबें पढ़ने से कन्याएँ विधवा हो जाएंगी।

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Chapter 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया - चर्चा करें [Page 128]

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NCERT Social Science (History) - India and the Contemporary World 2 [Hindi] Class 10
Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
चर्चा करें | Q 2. | Page 128
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