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Question
निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए-
फागुन के दिन चार होरी खेल मना रे। बिन करताल पखावज बाजै, अणहद की झनकार रे। बिन सुर राग छतीसूँ गावै, रोम-रोम रणकार रे।। सील संतोख की केसर घोली, प्रेम-प्रीत पिचकार रे। उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे।। घट के पट सब खोल दिए हैं, लोकलाज सब डार रे। 'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, चरण कँवल बलिहार रे।। |
(1) पद्यांश के आधार पर संबंध जोड़कर उचित वाक्य तैयार कीजिए- (2)
(i) सुमन | काँटे |
(ii) पँखुड़ी | गंध |
उपवन |
- ____________
- ____________
(2) (i) निम्नलिखित के लिए पद्यांश से शब्द ढूँढ़कर लिखिए- (1)
- पेड़-पौधों का समूह - ______
- नई कोमल पत्तियाँ - ______
(ii) पद्यांश में आए 'गंध' शब्द के अलग-अलग अर्थ लिखिए- (1)
- ____________
- ____________
(3) प्रथम चार पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए। (2)
Answer in Brief
One Line Answer
One Word/Term Answer
Solution
(1)
- सुमन किसी भी परिस्थिति में अपनी गंध नहीं खोता।
- फूल की पँखुड़ी काँटों के समीप रहकर भी खिलती है।
(2) (i)
- पेड़-पौधों का समूह - उपवन
- नई कोमल पत्तियाँ - कोंपल
(ii)
- महक
- बास
(3) मैंने अपने प्रिय से होली खेलने के लिए शील और संतोष रूपी केसर का रंग घोला है। मेरा प्रिय-प्रेम ही होली खेलने की पिचकारी है। उड़ते हुए गुलाल से सारा आकाश लाल हो गया है। अब मुझे लोक-लज्जा का कोई डर नहीं है इसलिए मैंने हदय रूपी घर के दरवाजे खोल दिए हैं। अंत में मीरा कहती हैं कि मेरे स्वामी गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले कृष्ण भगवान हैं। मैंने उनके चरण-कमलों में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया है।
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गिरिधर नागर
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