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'साहित्य और समाज' पर चर्चा कीजिए। - Hindi (Elective)

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Question

'साहित्य और समाज' पर चर्चा कीजिए।

Long Answer

Solution

साहित्य और समाज का बहुत गहरा नाता है। एक कवि इस समाज का ही अंग होता है। समाज का निर्माण लोगों से हुआ है। अतः एक कवि इसी समाज का अंग माना जाएगा। कवि समाज से थोड़ा-सा अलग होता है। वह समाज में व्याप्त असंगतियों से आहत और क्रोधित होता है। अतः वह रचनाओं का निर्माण करता है। इन्हीं रचनाओं के भंडार को साहित्य कहते हैं। एक कवि या लेखक अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्य का सृजन करता है और समाज को नई दिशा देता है। कवि या लेखक का दायित्व होता है कि वह अपनी रचनाओं से समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करे और समाज में पुरानी सोच के स्थान पर नई सोच का विकास करे। समाज में कई प्रकार की कुरीतियाँ, परंपराएँ, विद्यमान हैं। ये परपंराएँ और कुरीतियाँ समय के साथ पुरानी पड़ती जा रही हैं और इसमें विसंगतियाँ विद्यमान हो जाती हैं। साहित्य के माध्यम से उन्हें हटाने तथा क्रांति लाने का प्रयास किया जाता है। हमारे कवियों, लेखकों ने जो कुछ भी लिखा है, वे साहित्य कहलाता है। साहित्य में हर तरह की रचनाएँ सम्मिलित होती हैं। वे चाहे फिर प्रेम, भक्ति, वीरता, सामाजिक-राजनीतिक बदलाव, उनमें हुई उथल-पुथल या व्याप्त विसंगतियाँ इत्यादि विषय हों। इस तरह से ये रचनाएँ ऐतिहासिक प्रमाण भी बन जाती हैं। आज ढ़ेरों ऐसी रचनाएँ हैं जिनके माध्यम से हम अपने इतिहास के गौरवपूर्ण समय के दर्शन हो पाते हैं। भारतीय साहित्य इतना विशाल है कि उसे बहुत कालों में विभक्त किया गया है। इस तरह हम रचनाओं को उस काल की विशेषताओं के आधार पर व्यवस्थित कर विभक्त कर देते हैं। उनका विस्तृत अध्ययन करते हैं। तब हमें पता चलता है कि उस समय समाज में किस तरह की परिस्थितियाँ विद्यमान थी और क्या चल रहा था। ये रचनाएँ हमें उस समय के भारत के दर्शन कराती हैं। इनके अंदर हमें हर वो जानकारी प्राप्त होती है, जो हमें अपनी संस्कृति व इतिहास से जोड़ती है। हमारे देश का इतिहास इसी साहित्य में सिमटा पड़ा है। यदि हमें अपने देश, समाज, संस्कृति और उसकी परंपराओं को समझना है, तो अपने साहित्य में झाँकना पड़ेगा। साहित्य में समाज की छवि साफ़ लक्षित होती है। एक लेखक या कवि अपनी रचना को लिखते समय उस समय के समाज को हमारे सामने रख देता है। साहित्य में मात्र सामाजिक जीवन का ही चित्रण नहीं मिलता अपितु समाज में हर प्रकार के व्यक्तित्व का भी परिचय मिलता है। इस तरह हम स्वयं को साहित्य से जुड़ा मानते हैं। साहित्य हमारे सामने ऐसा दर्पण बनकर विद्यमान हो जाता है, जिसमें हम अपने समाज के प्राचीन और नवीन स्वरूप को देख पाते हैं। इसलिए कहा गया है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है।

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रामविलास शर्मा
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Chapter 2.08: रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्) - प्रश्न-अभ्यास [Page 146]

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NCERT Hindi - Antara Class 12
Chapter 2.08 रामविलास शर्मा (यथास्मै रोचते विश्वम्)
प्रश्न-अभ्यास | Q 1. | Page 146
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