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यदि 'स्किल इंडिया' जैसा कोई कार्यक्रम होता तो क्या गूंगे को दया या सहानुभूति का पात्र बनना पड़ता? - Hindi (Elective)

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Question

यदि 'स्किल इंडिया' जैसा कोई कार्यक्रम होता तो क्या गूंगे को दया या सहानुभूति का पात्र बनना पड़ता? 

Answer in Brief

Solution

दिव्यांगों (विकलांगों) की समाज में सदा से ही दयनीय स्थिति रही है। समाज में उनको प्रायः दया और सहानुभूति का पात्र माना जाता रहा है। यदि कोई दिव्यांग व्यक्ति किसी कार्य में या कला आदि में निपुण भी होता है तो भी उसकी कार्य-क्षमता पर लोगों को सहज विश्वास नहीं होता। उसे कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया जाना बहुत कठिन होता है। गूंगा भी अपनी विकलांगता के कारण चमेली की दया और सहानुभूति का पात्र बना था। यदि स्किल इंडिया जैसा कोई कार्यक्रम होता तो गूँगे को वहाँ कई चीज़ो को सीखने का अवसर मिलता और साथ ही उसके जैसे अनेक दिव्यांगों के साथ रहने और व्यावहारिक जीवन में रचने-बसने का मौक़ा मिलता। वह ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बनकर किसी-न-किसी कार्य में दक्षता प्राप्त कर लेता और स्वावलम्बी जीवन बिता रहा होता। पहले की अपेक्षा आज दिव्यांगों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। उनको रोजगार दिलाने में तथा कार्यकुशल बनाने में स्किल इंडिया प्रोग्राम के अतिरिक्त भी अन्य अनेक सुविधाएँ प्राप्त हैं। दिव्यांग लोग अनेक महत्वपूर्ण पदों पर सफलता से अपनी जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं। 

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गूँगे
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Chapter 1.4: गूँगे - प्रश्न-अभ्यास [Page 52]

APPEARS IN

NCERT Hindi - Antar Class 11
Chapter 1.4 गूँगे
प्रश्न-अभ्यास | Q 9. | Page 52

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