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परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों-तर्क सहित उत्तर दीजिए। - Hindi Course - A

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प्रश्न

परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों-तर्क सहित उत्तर दीजिए।

टीपा लिहा

उत्तर

स्त्री तथा पुरुष दोनों ही एक समान हैं। समाज की उन्नति के लिए दोनों का सहयोग ज़रुरी है। ऐसे में स्त्रियों का कम महत्व समझना गलत है, इसे रोकना चाहिए। जहाँ तक परंपरा का प्रश्न है, परंपराओं का स्वरुप पहले से बदल गया है। अत: स्त्री तथा पुरुष की असमानता की परंपरा को भी बदलना ज़रुरी है।

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स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
  या प्रश्नात किंवा उत्तरात काही त्रुटी आहे का?
पाठ 15: महावीरप्रसाद द्विवेदी - स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन - प्रश्न-अभ्यास [पृष्ठ ११०]

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एनसीईआरटी Hindi - Kshitij Part 2 Class 10
पाठ 15 महावीरप्रसाद द्विवेदी - स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
प्रश्न-अभ्यास | Q 5 | पृष्ठ ११०

संबंधित प्रश्‍न

'स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं' - कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।


द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोघी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है - जैसे 'यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरूषों का मुकाबला करतीं।' आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।


पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है - पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।


तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।


महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?


द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।


लेखक स्त्री-शिक्षा विरोधियों की किस सोच पर दुख प्रकट करता है?


लेखक नाटकों में स्त्रियों के प्राकृत बोलने को उनके अपढ़ होने का प्रमाण क्यों नहीं मानता है?


लेखक नाटकों में स्त्रियों के प्राकृत बोलने को उनके अपढ़ होने का प्रमाण क्यों नहीं मानता है?


‘हिंदी, बाँग्ला आजकल की प्राकृत हैं’ ऐसा कहकर लेखक ने क्या सिद्ध करना चाहा है?


प्राचीन भारत की किन्हीं दो विदुषी स्त्रियों का नामोल्लेख करते हुए यह भी बताइए कि उस समय स्त्रियों को कौन कौन-सी कलाएँ सीखने की अनुमति थी?


स्त्री-शिक्षा विरोधी स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट क्यों समझते थे?


महावीर प्रसाद विवेदी ने स्त्री-शिक्षा विरोधियों को किस संदर्भ में दशमस्कंध का तिरपनवाँ अध्याय पढ़ने का आग्रह किया है?


शिक्षा की व्यापकता के संदर्भ में लेखक का दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।


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