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"अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता" - Political Science (राजनीति विज्ञान)

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Question

"अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता" इस विचार के पक्ष एवं विपक्ष अपने तर्क दीजिए।

Long Answer

Solution

  1. अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय निति - निर्माताओं ने बड़ी भारी गलती की। 1990 से ही भारत ने नई आर्थिक निति अपना ली है और वह बड़ी तेजी से उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहा है। देश के अनेक बड़े नेता जो दुनिया के जाने - माने अर्थशास्त्री भी हुए हैं, ये भी निजी क्षेत्र उदारीकरण और सरकारी हिस्सेदारी को जल्दी से जल्दी सभी व्यवसयों, उद्योगों आदि में समाप्त करना चाहते हैं।
  2. दुनिया की दो बड़ी संस्थाओं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से भारत को तभी ऋण और ज्यादा निवेश मिल सकते हैं जब बहुराष्ट्रीय कपनियाँ, विदेशी निवेशकों का स्वागत हो और उद्योगों के विकास के लिए आतंरिक सुविधओं का बड़े पैमाने पर सुधार हो। इन सबके लिए सरकार पूँजी नहीं जुटा सकती। यह कार्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, बहुराष्ट्रीय - कंपनियाँ और बड़े - बड़े पूँजीपति लोग कर सकते हैं जो बड़ी - बड़ी जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं।
  3. अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में भारत तभी ठहर सकता है जब निति क्षेत्र को छूट दे दी गई होती।
  • विपक्ष में तर्क -
  1. वामपंथी विचारधारा के समर्थक और जो सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी हिस्से को बढ़ाना चाहते हैं वे तर्क देते हैं की भारत को सुदृढ़ और औद्योगिक क्षेत्र में आधार सरकारी वर्चस्व और मिश्रित निति से मिला है। यदि ऐसा नहीं होता तो भारत पिछड़ा रहता।
  2. भारत में विकसित देशों की तुलना में जनसंख्या ज्यादा है। यहॉँ बेरोजगारी है, गरीबी है, यदि पशिचमी देशों की होड़ भारत में सरकारी हिस्से को अर्थव्यवस्था में कम कर दिया जाएगा तो बेरोजगारी बढ़ेगी, गरीबी फैलेगी, धन और पूँजी कुछ ही कंपनियों के हाथों में केंद्रित हो जाएगी जिससे आर्थिक विषमता और बढ़ जाएगी।
  3. भारत एक कृषि प्रधान देश है। वह अमेरिका जैसे देशों का कृषि उत्पादन में मुकाबला नहीं कर सकता। कुछ देश स्वार्थ के लिए पेटेंट प्रणाली को कृषि में लागू करना चाहते हैं और जो सहायता राशि सरकार भारतीय किसानों को देती है वे उसे अपने दबाव द्वारा पूरी तरह समाप्त करना चाहते हैं जबकि अपने देश के किसानों को वह हर तरह से आर्थिक सहायता देकर विकासशील देशों को कृषि सहित हर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में मात देना चाहते हैं।
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राजनीतिक फ़ैसले और विकास
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Chapter 3: नियोजित विकास की राजनीति - प्रश्नावली [Page 63]

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NCERT Political Science [Hindi] Class 12
Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति
प्रश्नावली | Q 9. | Page 63

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निम्नलिखित का मेल करें।

(क) चरण सिंह (१) औद्योगिक
(ख) पी. सी. महालनोबिस (२) जोनिंग
(ग) बिहार का अकाल (३) किसान
(घ) वर्गीज कुरियन (४) सहकारी डेयरी

निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दें:

आज़ादी के बाद के आरंभिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपीं। एक तरफ राष्ट्रिय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धांत अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ - साथ आर्थिक संसोधनों के संकेंद्रिण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाई और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज़ ठहराया गया।

- फ्रैंकिन फ्रैंकल

  1. यहॉँ लेखक किस अंतर्विरोघ की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोघ के राजनितिक परिणाम क्या होंगे?
  2. अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएँ की कांग्रेस इस निति पर क्यों चल रही थीं? क्या इसका संबंध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?
  3. क्या कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और उसके प्रांतीय नेताओं के बीच भी कोई अंतर्विरोघ था?

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