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Question
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow:
निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
"मुझे न जाने क्या हो रहा था। मेरा अंतर्मन काँपने लगा था; मैं उन्हें देखती थी तो जैसे मोहिनी-सी छा जाती थी। मैं थी भी और नहीं भी । मोहग्रस्त आदमी होता भी है और नहीं भी होता, पर हुआ यही, मैं वहाँ न ठहर सकी॥" संस्कार और भावना - विष्णु प्रभाकर |
- किसका अंतर्मन कब कॉँपने लगा था? [2]
- किन्हें देख कर वक्ता को मोहिनी सी छा गई थी और क्यों? [2]
- अंत में माँ का हृदय परिवर्तन कब क्यों और किस प्रकार हुआ? [3]
- 'संस्कारों की दासता' से आप क्या समझते हैं? आधुनिक युग में हमारे लिए संस्कार अधिक महत्वपूर्ण है या भावनाएँ ज्यादा महत्व रखती हैं? तर्क सहित उत्तर लिखिए। [3]
Answer in Brief
Solution
- उमा का अंतर्मन तब काँपने लगा था जब वह अविनाश की पत्नी से मिलने गई थी और उसकी सुंदरता और भोलेपन को देखकर तथा बातें सुन उसका अंतर्मन काँपने लगा था।
- अविनाश की पत्नी और उमा की जेठानी को देखकर वक्ता (उमा) को मोहिनी सी छा गई थी क्योंकि अविनाश की पत्नी बंगाली थी और सुंदर थी। वह वाक् कला में बहुत चतुर थी। वह अपनी बातों से सबको मुग्ध कर लेती थी।
- जब माँ को पता चला कि उसकी बड़ी बहू ने उसके बड़े बेटे अविनाश की बहुत सेवा की है। अपनी परवाह न कर उसे हैजा जैसी बीमारी से बचा लिया है तब उसका हृदय पिघल जाता है। माँ का हृदय परिवर्तन तब हुआ जब उन्होंने सुना कि अविनाश की पत्नी मरणासन्न है। उन्हें एहसास हुआ कि अगर अविनाश की पत्नी नहीं बचेगी तो अविनाश भी नहीं बचेगा। यह सोचकर माँ ने अपने मोह और ममता के कारण अपने संस्कारों को तोड़कर अविनाश की पत्नी को स्वीकार करने का निर्णय लिया।
- 'संस्कारों की दासता' से तात्पर्य है उन परंपराओं और रूढ़ियों का पालन करना जो समाज ने स्थापित की हैं, भले ही वे आधुनिक समय में अप्रासंगिक हो चुकी हों। आधुनिक युग में भावनाएँ अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हमें मानवीयता, संवेदनशीलता, और सहानुभूति का एहसास कराती हैं। संस्कार और परंपराएँ हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं, परंतु जब वे मानवता और संबंधों के आड़े आने लगती हैं, तब उन्हें बदलना आवश्यक हो जाता है। भावनाएँ हमें इंसान बनाती हैं और जीवन को जीने लायक बनाती हैं। वर्तमान युग में संस्कारोंसे अधिक भावनाएँ महत्वपूर्ण है। इस कथन को अविनाश की बहूने सिद्ध कर दिया था और अन्त में अविनाश की माँ ने भी अपने संस्कार त्याग अपने बेटे व बहू को अपना लिया था।
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संस्कार और भावना
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