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Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow: निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए: “पश्चाताप तो तुम्हें होना चाहिए। - Hindi

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Question

Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow:

निम्नलिखित अवतरण को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:

“पश्चाताप तो तुम्हें होना चाहिए। मैं क्यों पश्चाताप करूँगा? मैंने ऐसा कौनसा पाप किया है? मैंने अपने मन के भावों को गुप्त नहीं रखा, मैंने षड़यन्त्र नहीं किया, मैंनें गुरूजनों का वध नहीं किया।”

महाभारत की एक साँझ - भारत भूषण अग्रवाल

  1. प्रस्तुत पंक्तियों के वक्ता और श्रोता का परिचय दीजिए।   [2]
  2. वक्ता पश्चाताप क्यों नहीं करना चाहता? वह अपने पक्ष में कौन-कौन से तर्क रखता है?   [2]
  3. आपके अनुसार पश्चाताप किसे होना चाहिए था? वक्ता को या श्रोता को, तर्कसहित लिखिए ।    [3]
  4. श्रोता वक्ता के पास क्यों आया था? अन्त में वक्ता का क्या हाल होता है और क्यों?    [3]
Answer in Brief

Solution

  1. प्रस्तुत पंक्तियों के वक्ता दुर्योधन (सुयोधन) हैं और श्रोता युधिष्ठिर हैं। दुर्योधन धृतराष्ट्र का पुत्र और कौरवों का प्रमुख है, जबकि युधिष्ठिर पांडवों में सबसे बड़े भाई और धर्मराज कहलाते हैं, वे पांडव परिवार के ज्येष्ठ पुत्र हैं। दूसरी तरफ दुर्योधन कुरुवंशी है। वह धृतराष्ट्र का सबसे बड़ा पुत्र है। महाभारत का युद्ध दुर्योधन की अनीति, हठ और अहंकार के कारण हुआ था।
  2. वक्ता, दुर्योधन, पश्चाताप नहीं करना चाहता क्योंकि उसे लगता है कि उसने कोई पाप नहीं किया है। वह कहता है कि उसने अपने मन के भावों को गुप्त नहीं रखा, षड़यंत्र नहीं किया और गुरुजनों का वध नहीं किया। उसे विश्वास है कि उसने जो कुछ किया, वह अपने बचाव के लिए और न्याय संगत था।
  3. मेरे अनुसार, पश्चाताप दुर्योधन को होना चाहिए था क्योंकि उसके कारण महाभारत का विनाशकारी युद्ध हुआ, जिसमें लाखों लोग मारे गए और परिवार बिखर गए। उसकी महत्त्वाकांक्षा और अधर्म के कारण ही यह युद्ध हुआ। युधिष्ठिर ने तो न्याय और धर्म के मार्ग पर चलने की कोशिश की थी, हालांकि युद्ध का परिणाम और उसमें हुई हिंसा भी उनकी जिम्मेदारी में आती है।
  4. श्रोता युधिष्ठिर वक्ता दुर्योधन के पास उसे शांति देने और उसकी पीड़ा को बांटने आया था। अंत में दुर्योधन का हाल यह होता है कि वह अपनी मृत्यु को स्वीकार कर लेता है और कहता है कि उसे कोई पश्चाताप नहीं है। वह अपने पिता की अंधता को ही अपने दुख का कारण मानता है और उसकी इसी पीड़ा के साथ उसका अंत हो जाता है। इस संवाद के बाद दुर्योधन का प्राणांत हो गया । जिस प्रकार किसी दिवस का अंत सांझ से होता है उसी प्रकार महाभारत के युद्ध का अंत दुर्योधन की पराजय एवं मृत्यु से हुआ।
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महाभारत की एक साँझ
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