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‘सौवर्णो नकुलः’ इत्यस्य पाठस्य सारांशः मातृभाषया लेखनीयः - Sanskrit (Core)

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Question

‘सौवर्णो नकुलः’ इत्यस्य पाठस्य सारांशः मातृभाषया लेखनीयः

Answer in Brief

Solution

“सौवर्णों नकुलः’ सारांश – एक बार सुवर्णमय बगल वाला, बिल में रहने वाला अत्यन्त शक्तिशाली नेवला बिल से बाहर आकर मनुष्य की आवाज में इस प्रकार कहने लगा – प्राचीन समय में कुरुक्षेत्र में अत्यन्त निर्धन, इधर-उधर गिरे हुए अनाज के दानों से अपना जीवन निर्वाह करने वाला एक वृद्ध धर्मात्मा ब्राह्मण हुआ था। वह अपने पुत्र, पत्नी तथा पुत्रवधू के साथ कठोर तपस्या में लीन हो गया। उसे कभी भोजन के समय भोजन मिल जाता था, कभी नहीं मिल पाता था। एक बार वहाँ भयंकर अकाल पड़ा और उसके पास कुछ भी वस्तु या भोज्य पदार्थ नहीं रहा। तब छठा प्रहर बीत जाने पर उसने एक सेर जौ प्राप्त किए तथा उन तपस्वियों ने उस एक सेर जौ से सत्तू बनाए। नित्य जप कर्म, यज्ञ इत्यादि करने के पश्चात् उन चारों तपस्वियों ने आपस में एक-एक पाव सत्तू बाँट लिए। तभी वहाँ एक ब्राह्मण आ गया। उस अतिथि को देखकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुए और उसे कुटिया में अन्दर लाकर, अर्घ्य, जल, आसन आदि देकर उस तपस्वी ने भूख से व्याकुल उस अतिथि को खाने के लिए सत्तू भी दे दिए। इस व्यवहार से अत्यन्त प्रसन्न उस ब्राह्मण ने उन तपस्वियों को स्वर्ग भेज दिया। उन सबके स्वर्ग चले जाने पर अंत में वह नेवला कहने लगा – यह यज्ञ एक सेर भर सत्तू के समान किसी भी प्रकार नहीं है।

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सौवर्णो नकुल:
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Chapter 2: सौवर्णो नकुलः - अभ्यासः [Page 13]

APPEARS IN

NCERT Sanskrit - Bhaswati Class 11
Chapter 2 सौवर्णो नकुलः
अभ्यासः | Q 5 | Page 13

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अधोऽङ्कितेषु सन्धिविच्छेदं दर्शयत –

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अधोऽङ्कितेषु सन्धिविच्छेदं दर्शयत –

बिलान्निष्क्रम्य 


अधोऽङ्कितेषु सन्धिविच्छेदं दर्शयत –

उञ्छवृत्तेर्वदान्यस्य


अधोऽङ्कितेषु सन्धिविच्छेदं दर्शयत –

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अधोऽङ्कितेषु सन्धिविच्छेदं दर्शयत –

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अधोन्यस्तेषु सन्धिं कुरुत –

तस्य + आहारः = ______।


अधोन्यस्तेषु सन्धिं कुरुत –

यत् + अभूत + विभो = ______।


अधोन्यस्तेषु सन्धिं कुरुत –

 उञ्छवृत्तिः + द्विजः = ______। 


अधोन्यस्तेषु सन्धिं कुरुत –

 नियत + इन्द्रियः = ______।


अधोन्यस्तेषु सन्धिं कुरुत –

ततः + अहम् = ______।


अधोन्यस्तेषु सन्धिं कुरुत –

न्याय + उपात्तेन = ______।


अधोऽङ्कितयोः श्लोकयोः स्वमातृभाषया अनुवादः कार्यः

सक्तुप्रस्थेन वो नायं यज्ञस्तुल्यो नराधिपाः।
उञ्छवृत्तेर्वदान्यस्य कुरुक्षेत्रनिवासिनः||


अधोऽङ्कितयोः श्लोकयोः स्वमातृभाषया अनुवादः

कार्यः दिव्यपुष्पावभर्दाच्च साधो नलवैश्च तैः।
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राजशार्दूल! ______ श्रूयताम्।


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