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“फ़ादर कामिल बुल्के को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था”- लेखक ने ऐसा क्यों कहा? ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। - Hindi Course - A

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Question

“फ़ादर कामिल बुल्के को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था”- लेखक ने ऐसा क्यों कहा?

‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

Answer in Brief

Solution

फ़ादर बुल्के मानवीय करुणा के अवतार प्रतीत होते हैं। जिनमें वात्सल्य और ममता कूट-कूटकर भरी थी। अपने प्रियजनों के प्रति अत्यधिक आत्मीयता रखते हुए उन पर करुणा, ममता और वात्सल्य की वर्षा निरंतर करते रहते थे। अपने प्रियजनों के प्रति इतनी आत्मीयता रखते थे कि अपने आशीर्वादों से लोगों के मन को लबालब भर देते थे।

फ़ादर बुल्के की मृत्यु ज़हरबाद अर्थात्‌ गैंग्रीन से हुई। उनके शरीर में फोड़े का ज़हर फैल गया था। लेखक ने जब यह समाचार सुना तो वे उदास हो गए। उन्होंने फ़ादर कामिल बुल्के के लिए यह कहा कि उन्हें ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था क्योंकि फादर की रगों में तो दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के सिवाय कुछ भी नहीं था। वे आजीवन दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयत्न करते रहे। वे सभी के प्रति सहानुभूति एवं करुणा का भाव रखते थे। उनके लिए जहर का विधान होना ही नहीं चाहिए था। उन जैसे परोपकारी, वात्सल्यमय तथा मानवीय करुणा से ओत-प्रोत व्यक्ति को ऐसी कष्टकर मृत्यु नहीं मिलनी चाहिए थी। लेखक इसे फ़ादर बुल्के के प्रति अन्याय मानते हैं।

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मानवीय करुणा की दिव्य चमक
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2021-2022 (April) Delhi Set 2

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