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‘रेल की आत्‍मकथा’ विषय पर लगभग सौ शब्‍दों में निबंध लिखिए। - Hindi [हिंदी]

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Question

‘रेल की आत्‍मकथा’ विषय पर लगभग सौ शब्‍दों में निबंध लिखिए।

Answer in Brief

Solution

रेल की आत्‍मकथा

मैं एक रेल हूँ। मैं बिजली से चलने वाली रेल हूं मेरा काम लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना है। जेम्स वाट ने जब भाप से चलने वाला इंजन बनाया, तब मेरा भी अस्तित्व संभव हुआ | आज से कुछ समय पहले मैं कोयला एवं भाप से चलती थी लेकिन अब मैं बिजली से चलने लगी हूँ जिससे मेरी रफ्तार में भी अंतर देखने को मिला है।१८५३ में पहली बार मुंबई से थाने तथा थाने से मुंबई तक मैं दौड़ी। पुरे देश में सरकार ने पटरियों का जाल बिछा दिया है | पहले ज्यादा तर मीटर गेज का ही उपयोग होता था | बाद में ब्राड गेज की पट्रीयों का उपयोग होने लगा। भारत में मैं लगभग 130 किलोमीटर की रफ्तार से चलती हू वहीं विदेशों में बुलेट ट्रेन जो कि मेरी सखी है लगभग 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। भारत देश में लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए सुविधाजनक जल्द से जल्द कई रेलो का निर्माण हो रहा है। मुझ रेल में सवारियों को बैठने के लिए पैसा भी कम देना पड़ता है। जिससे मुझमें सवारी करने वाले लोग मेरी तारीफ करते हैं। लेकिन कभी-कभी मैं देखती हूं कि यदि मैं किसी कारण बस लेट हो जाऊं तो लोग मेरी बुराई करने लगते हैं जो मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरी सवारियों को समझना चाहिए कि कभी-कभी गलती सबसे हो जाती है।

मुझ रेल में कई विद्यार्थी भी बैठते हैं जो शनिवार को अपने मां बाप से मिलने के लिए जा रहे होते हैं मुझमें कई आर्मी ऑफिसर भी बैठकर मेरी शान बढ़ाते हैं कई ऐसे महान लोग भी मेरे द्वारा सवारी करते हैं तो मुझे बहुत ही अच्छा लगता है। मुझमें जनरल डिब्बे होते हैं जिसमें कोई भी सवारी बैठ सकती है बस उसे एक टिकट लेना पड़ता है लेकिन यदि आप अपनी यात्रा को बहुत ही अच्छी बनाना चाहते हैं तो आप रेल में अपनी सीट को आरक्षित भी कर सकते हैं। मैंने पुरे देश को एक दूसरे से जोड़ दिया है। 

मुझमें सवारियों को कई तरह की सुविधाएँ दी जाती हैं। रेलवे स्टेशनों पर भोजन, पानी की उचित व्यवस्था होती है जिससे मुझमे यात्रा करने में सवारियों को किसी तरह की समस्या ना हो पाए। कभी-कभी मैं नाराज भी हो जाती हूँ क्योंकि कुछ लोग बिना टिकट लिए भी मुझमें सवार होकर यात्रा करने लगते हैं। जो भी हो लेकिन मैं अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होती मैं अपनी प्रत्येक सवारी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाती जाती हूँ। मुझे यह सब करना अच्छा लगता है यह एक तरह की लोगों की सेवा ही है। मैं हमेशा यही चाहूंगी कि मुझमें सवार करने वाले प्रत्येक यात्री को मैं अच्छी से अच्छी सुविधा प्रदान कर सकूं बस यही मेरी कामना है।

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निबंध लेखन
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Chapter 1.04: मेरी स्मृति - उपयोजित लेखन [Page 21]

APPEARS IN

Balbharati Hindi - Kumarbharati 10 Standard SSC Maharashtra State Board
Chapter 1.04 मेरी स्मृति
उपयोजित लेखन | Q १. | Page 21

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