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भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए किस किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिए - पारंपरिक या अपारंपरिक? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन - से उदाहरण देंगे? - Political Science (राजनीति विज्ञान)

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प्रश्न

भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए किस किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिए - पारंपरिक या अपारंपरिक? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन - से उदाहरण देंगे?

दीर्घउत्तर

उत्तर

भारत को पारंपरिक (सैन्य) और अपारंपरिक खतरों का सामना करना पड़ा है। ये खतरे सिमा के अंदर से भी उभरे एवं बाहर से भी। भारत की सुरक्षा निति के चार बड़े घटक हैं और अलग - अलग समय में इन्ही घटकों के हेर - फेर से सुरक्षा की रणनीति बनायी हुई है।

  1. प्रथम घटक - सुरक्षा निति का पहला घटक सैन्य क्षमता को मजबूत करना रहा है क्योंकि भारत पर पड़ोसी देशों के हमले होते रहे हैं। पाकिस्तान ने 1947 - 48, 1965, 1971 तथा 1999 में एवं चीन ने सन 1962 में भारत पर हमला किया। दक्षिण एशियाई इलाके में भारत के चरों ओर परमाणु हथियारों से लैस देश हैं। ऐसे में भारत के परमाणु परीक्षण करने के फैसले (1998) को उचित ठहराते हुए भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क दिया था।
  2. दूसरा घटक - भारत की सुरक्षा निति का दूसरा घटक अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियमों और संस्थओं को सुदृढ़ करना है। भारत ने अपनी सुरक्षा की रणनीति में यह सिद्धांत भी अपनाया है की अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों व नियमों को मजबूत बनाने में योगदान करे क्योंकि इनकी मजबूती से देशों की बाहरी सुरक्षा मजबूत होती है। भारत ने निउपनिवेशीकरण का समर्थन किया है; अभी राष्ट्रों की राष्ट्रिय स्वतंत्रता को उनका जन्मसिद्ध अधिकार माना है और साम्राजयवाद का विरोध किया है। यदि संयुक्त राष्ट्र संघ मजबूत होता है तो किसी देश को पड़ोसी देश पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हो सकती। भारत ने अंतररष्ट्रीय संघर्षों के समाधान में संयुक्त राष्टसंघ को अंतिम तथा सबसे अधिक उचित मंच माने जाने पर जोर दिया है। भारत ने इस बात पर जोर दिया है की सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयों का सम्मान करना उनका मानवीय दायित्व है। भारत ने हथियारों के अप्रसार के संबंध में एक सार्वभौम और बिना भेदभाव वाली निति चलाने की पहल कदमी की जिसमे हर देश को सामूहिक संहार के हथियारों (परमाणु, जैविक, रासायनिक) से संवद्ध बराबर के अधिकार और दायित्व हों। भारत ने नव - अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की माँग उठाई और सबसे बड़ी बात यह है की दो महाशक्तियों के खेमेबाजी से अलग उसने गुटनिरपेक्षता के रूप में विश्व - शांति का तीसरी विकल्प को सामने रखा। भारत उन 160 देशों में शामिल है जिन्होंने 1997 के क्योटे प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं। क्योटो प्रोटोकॉल में वैश्विक तापवृद्धि पर काबू रखने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सृजन को कम करने के संबंध में दिशा - निर्देश बताए गए हैं। सयोहमुलक सुरक्षा की पहलकदमियों के समर्थन में भारत ने अपनी सेना संयुक्त राष्ट्र संघ के शांतिवहाली के मिशनों में भेजी है।
  3. तीसरा घटक - भारत की सुरक्षा रणनीति का तीसरा घटक है देश की अंदरूनी सुरक्षा समस्याओं से निबटने की तैयारी। नागालैंड, मिजोरम, पंजाब और कश्मीर जैसे क्षेत्रों से कई उग्रवादी समूहों ने समय - समय पर इन प्रांतो को भारत से अलगाने की कोशिश की। भारत ने राष्ट्रिय एकता को बनाये रखने के लिए लोकतान्त्रिक राजनितिक व्यवस्था का पालन किया है। यह व्यवस्था विभिन्न समुदाय और जन - समूहों को अपनी शिकायतों को खुलकर रखने और सत्ता में भागीदारी दे सके।
  4. चौथा घटक - भारत में अर्थव्यवस्था को इस तरह विकसित करने के प्रयास किए गए हैं की बहुसंख्यक नागरिकों को गरीबी और आभाव के निजात मिले तथा नागरिकों के बिच आर्थिक असमानता ज्यादा न हो। ये प्रयास ज्यादा सफल नहीं हुए हैं। हमारा देश अब भी गरीब है और असमानताएँ मौजूद हैं। फिर भी, लोकतान्त्रिक राजनितिक में ऐसे अवसर उपलब्ध हैं की गरीब और वंचित नागरिक अपनी आवाज उठा सकें। लोकतान्त्रिक रीती से निर्वाचित सरकार के ऊपर दबाव होता है की वह आर्थिक संवृद्धि को मानवीय विकास का सहगामी बनाए। इस प्रकार, लोकन्त्र सिर्फ राजनितिक आदर्श नहीं है; लोकतान्त्रिक शासन जनता को ज्यादा सुरक्षा मुहैया करने का साधन भी है
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पारंपरिक धारणा - आंतरिक सुरक्षा
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अध्याय 7: समकालीन विश्व में सुरक्षा - प्रश्नावली [पृष्ठ ११६]

APPEARS IN

एनसीईआरटी Political Science [Hindi] Class 12
अध्याय 7 समकालीन विश्व में सुरक्षा
प्रश्नावली | Q 11. | पृष्ठ ११६

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