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तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में क्या अंतर है? - Political Science (राजनीति विज्ञान)

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प्रश्न

तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में क्या अंतर है?

अंतर स्पष्ट करें
दीर्घउत्तर

उत्तर

  1. तीसरी दुनिया के देशों एवं विकसित देशों की जनता के मौजूद खतरों में अंतर को निम्न - प्रकार से समझा जा सकता है - तीसरी दुनिया से हमारा अभिप्राय जापान को छोड़कर संपूर्ण एशियाई, अफ्रीकी और लेटिन अमरीकी देशों से है। इन देशों के सामने विकसित देशों की जनता के सामने आने वाले मौजूद खतरों में बड़ा अंतर है। विकसित देशों से हमारा अभिप्राय प्रथम दुनिया और द्वितीय दुनिया के देशों से है। प्रथम दुनिया के देशों में संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और पशिचमी यूरोप के अधिकांश देश आते हैं जबकि दूसरी दुनिया में प्रायः पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) और अधिकास पूर्वी यूरोप के देश शामिल कीए जाते हैं।
  2. तीसरी दुनिया के देशों के सामने बाह्य सुरक्षा का खतरा तो है ही लेकिन उनके सामने आंतरिक खतरे भी बहुत हैं। बहरी खतरों में उनके समक्ष बड़ी शक्तियों के वर्चस्व का खतरा होता है। ये देश उन्हें अपने सैन्य वर्चस्व, राजनैतिक विचारधारा के वर्चस्व और आर्थिक सहायता सशर्त देने के वर्चस्व से डराते रहते हैं। प्रायः बड़ी शक्तियाँ उनके पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके या मनमानी कठपुतली सरकारें बनाकर उनसे मनमाने तरिके से तीसरी दुनिया के देशों के लिए खतरे पैदा करते है। अपरोक्ष रूस से वह आतंकवाद को बढ़ावा देकर या मनमानी कीमतों पर प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति या अपने हित के लिए ही उदारीकरण, मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण, सशर्त निवेश आदि के द्वारा आंतरिक आर्थिक खतरे जैसे कीमतों की बढ़ोत्तरी बेरोजगारी में वृद्धि, निर्धनता, आर्थिक विषमता को प्रोत्साहन देकर, उन्हें निम्न जीवन स्तर की तरफ अप्रत्यक्ष रूप से धकेलकर नए - नए खतरे पैदा करते हैं।
  3. तीसरी दुनिया के सामने आतंकवाद, एड्स , बर्ड फ्लू और अन्य महामारियाँ भी खतरा बनकर आती हैं। इन देशों में प्रायः संकीर्ण भावनाओं के कारण पारस्परिक घृणा उत्पन्न होती रहती है। जैसे धार्मिक उन्माद, जाति भेद - भाव पर आधारित आंतरिक दंगे का खतरा, महिलाओं और बच्चों का निरंतर बढ़ता हुआ यौवन और अन्य तरह का शोषण, भापावाद, क्षेत्रवाद आदि से भी इन देशों के खतरा उत्पन्न होता रहता है।
  4. कई बार बड़ी शक्तियों द्वारा इन देशों में सांस्कृतिक शोषण और पश्चात संस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जाता है जिनके कारण उनकी पहचान और संस्कृति खतरे में आ सकती है। जहाँ तक विकसित राष्ट्रों का प्रश्न है। उनके सामने अपने परमाणु बमों के वर्चस्व को बनाए रखना और विश्व की अन्य शक्तियों को नई परमाणु शक्ति बनने से रोकना हैं।
  5. दूसरी और पहली दुनिया के देश चाहते हैं की नाटो बना रहे लेकिन वैसा जैसा कोई सैन्य संगठन भूतपूर्व साम्यवादी देश पुनः न गठित होने पाए। विकसित देश यह भी चाहते है की सभी देश मुक्त व्यापार, उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपनाएँ, सभी तेल उत्पदक राष्ट्र उन्हें उनकी इच्छानुसार ठीक - ठाक कीमतों पर निरंतर तेल की सप्लाई करते रहें और उनके प्रभाव में रहे। विकसित देश यह चाहते है की आतंकवादी अथवा कथित इस्लामिक धर्माधता के पक्षधर आतंकवादियों से निपटने के लिए न केवल वे सभी परस्पर सहयोग करें बल्कि तीसरी दुनिया के सभी देश भी उनके साथ रहें।
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पारंपरिक धारणा - आंतरिक सुरक्षा
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अध्याय 7: समकालीन विश्व में सुरक्षा - प्रश्नावली [पृष्ठ ११५]

APPEARS IN

एनसीईआरटी Political Science [Hindi] Class 12
अध्याय 7 समकालीन विश्व में सुरक्षा
प्रश्नावली | Q 4. | पृष्ठ ११५

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