Advertisements
Advertisements
Question
निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए -
पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े। नीरज नयन नेह जल बाढ़े॥ कहब मोर मुनिनाथ निबाहा। एहि तें अधिक कहौं मैं काहा॥ मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ। अपराधिहु पर कोह न काऊ॥ मो पर कृपा सनेहू बिसेखी। खेलत खुनिस न कबहूँ देखी॥ |
Solution
अपने प्रभु श्री राम के विषय में बोलते समय उनका शरीर पुलक से भर जाता है और नेत्र अश्रु पूरित हो उठते है। वह श्री राम के स्वभाव की चर्चा करते हुए कहते है कि उनका हृदय कोमल और निर्मल है। उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ बताते हैं कि वे अपराधी पर भी क्रोध नहीं करते।
Notes
- संदर्भ - 1 अंक
- प्रसंग - 1 अंक
- व्याख्या - 3 अंक
- विशेष - 1 अंक
APPEARS IN
RELATED QUESTIONS
'हारेंहु खेल जितावहिं मोही' भरत के इस कथन का क्या आशय है?
'मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ' में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
'महीं सकल अनरथ कर मूला' पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
'फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली'। पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।
आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य लिखिए।
पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े।
नीरज नयन नेह जल बाढ़े॥
कहब मोर मुनिनाथ निबाहा।
एहि ते अधिक कहौं मैं काहा॥
वियोगावस्था में सुख देने वाली वस्तुएँ भी दुख देने लगती हैं। 'गीतावली' से संकलित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए।
निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
महीं सकल अनरथ कर मूला। सो सुनि समुझि सहिउँ सब सूला॥ |
भरत का आत्म परिताप उनके व्यक्तित्व के किस पक्ष की ओर संकेत करता है? वर्तमान में ऐसे व्यक्तित्व की आवश्यकता सिद्ध कीजिए।